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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] अगर सचमुच तस्वीर होती, तो रामेश्वर स्लाइड समेत उसे बिना दाम भेंट करके कितना प्रसन्न होता! पर अब वह मरा जा रहा था। कैसी बुरी विडम्बना में फँस गया था वह ! उसे सुनना पड़ा, "यह ठीक नहीं है ! जो हो आप तस्वीर दे दीजिए । हमें यह नहीं मालूम था।" रामेश्वर क्या कहे ! बोला, "क्या आप यह समझती थीं तस्वीर अभी तैयार हो जायगी, और आपको मिल जायगी ?" ___ जवाब मिला, "हमें यह नहीं मालूम था कि तस्वीर आपके ही पास रहेगी।" रामेश्वर ने कहा, "तो, इसमें हर्ज ही क्या है ?" महिला अकेली नहीं थीं। उनके साथ एक महिला और थीं। एक पुरविया बुड्डा नौकर था, और कई बाल-बच्चे थे । उन्होंने क्षण-भर अपनी साथिन की ओर देखा; देखकर कहा, "नहीं, नहीं, आप दे दीजिए।" रामेश्वर अभी तक कभी का दे देता, पर दे तो तब, जब हो । उसने कहा, "देने के माने उसे खराब कर देना है। इससे तो अच्छा उसे तोड़ ही दिया जाय । श्राप मेरा परिश्रम क्यों व्यर्थ करवाती हैं ?" ___ उन्होंने फिर साथिन की ओर ऐसे देखा, जैसे वह स्वयं रामेश्वर को छुटकारा दे देना चाहती हैं । पर शायद साथिन की ओर से उन्हें संकेत मिला-लाहौर जाकर यह बात छिपी न रहेगी, फिर कैसा होगा ? उन्होंने कहा, "तो तोड़ डालिए।" रामेश्वर ने सोचा-अगर, कहीं दूसरी महिला भी फोटो में श्रा गई होती, तो शायद कठिनता न होती। उसने अपील करते हुए कहा, "जी, देखिए मैं दिल्ली रहता हूँ, आप लाहौर जा रही हैं । मेरा आपका परिचय भी नहीं है । इस दिनको छोड़कर शायद फिर
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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