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________________ ५६ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग ] अच्छा खिला-पिलाकर पालते - पोसते रहना माँ ने अपना कत्तव्य समझा । रामेश्वर बड़े भले स्वभाव का युवक था । उसके चलन में जरा भी खोट न थी; पर था वह आनन्दी और निश्चिन्त स्वभाव का । उसने प्रशंसनीय सफलता के साथ बी० ए० पास किया था, पर वह यह नहीं जानता था कि इस दो शब्द की पूँछ से कहाँ और किस तरह फ़ायदा उठाया जा सकता है । इस पूँछ के लगने के बाद, एक विशिष्ट गौरव से सिर उठाकर, राह चलते नेटिव लोगां पर हिकारत की निगाह डालते हुए चलने का अधिकार मिल जाता है - यह भी वह मूर्ख न समझता था । इस फोटोग्राफी की सूझ के बाद अब वह बिल्कुल ऐरे-गैरे लोगों में अपना कैमरा बाँह पर लटकाये और हाथ में स्टैण्ड को छड़ी के मानिन्द घुमता हुआ कहीं भी देखा जा सकता है । उसकी अपनी खींची हुई अच्छी-बुरी तस्वीरों के सँग्रह में आप एक जाट को दिल्ली के चाँदनी चौक के फुटपाथ पर बोतल लगाये सोडा वाटर गकटते पा सकते हैं, होली के उत्सव की खुशी में रंग-बिरंगे उछलते-कूदते आठ-आठ दस-दस ग्रामीणों की नाचती हुई उन्मत्त टोलियों को पा सकते हैं। सारांश यह कि उसके चित्र अधिकतर साधारण कोटि के लोगों में से लिये गये हैं । वह उनसे जितना अपनापा कर सकता है, उतना बड़े आदमियों से नहीं । 1 यहाँ हम यह भी कह देना चाहते हैं कि वह कोई धनिक का पुत्र नहीं है । उसे अपने खर्च के लिए चालीस मासिक मिलते हैं; लड़-झगड़ कर दस रुपए मासिक तक और मिल जाते हैं, — ज्यादा नहीं । रामेश्वर यह जानता है, और वह जहाँ तक होता है चालीस से अधिक न लेने का ही प्रयत्न करता है । कभी अधिक खर्च होता
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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