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________________ श्रात्मशिक्षण लड़कों की अपनी स्वप्न की दुनिया अलग होती है। हम बड़ों का प्रवेश वहाँ निषिद्ध है । अपने स्वप्नों पर चोट वह नहीं सह सकते । हम बड़ों को इसका ख्याल रखना चाहिए । 1 - लेकिन जब घर में पैर रखते ही दिनमणि ने रामचरण की उद्दण्डता और अपने धैर्य की बात सुनाई तो उन्हें मालूम हुआ कि सचमुच लड़के में जिद बढ़ने देनी नहीं चाहिए। यह बात सच थी कि दिनमणि ने स्कूल से लौटने पर पुत्र से खाने के लिए आध घण्टे तक अनुरोध किया था । उस सारे काल रामचरण मुँह फेर खाट पर पड़ा रहा था । उकताकर अन्त में उत्तर में उसने तीन बार यही कहा था, “मैं नहीं खाऊँगा, नहीं खाऊँगा, नहीं खाऊँगा ।” यह उत्तर सुनकर दिनमणि खाट से उठ खड़ी हुई थी और उसने तथ्य की बातें बिना लाग-लपेट के रामचरण को वहींकी वहीं सुना दी थीं । रामचरण सब को पीता चला गया था । यथार्थ स्थिति का परिचय पाकर रामरत्न दफ्तर के कपड़ों में ही अन्दर जाकर उसे डपटकर बोले, “रामचरण, क्या बात है जी ?" रामचरण ने पिता के स्वर पर चौंककर ऐसे देखा, जैसे कहीं किसी खास बात के होने का उसे पता न हो, और वह जानना चाहता हो । ४७ रामचरण की आँखों में फैली इस शिशुवत् अबोधता पर पिता को और तैश हो आया । बोले, “खाना तुमने क्यों नहीं खाया जी ? तुम्हारी मन्शा क्या है ? क्या चाहते हो ? क्या घर में किसी को चैन लेने देना चहीं चाहते ? सब तुम्हारी खुशामद करें, तब तुम खाओगे ? आखिर तुम क्या चाहते हो ? रोज-रोज यह तमाशा किस लिए ?" इसी तरह दो-तीन मिनट तक रामरत्न क्रोध में अपनी बात
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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