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________________ पाजेब गुस्ताखी पर बड़ा बुरा मालूम हुआ। बोलो इसमें बात क्या है। इसमें मुश्किल कहाँ है ? समझाकर बात कर रहे हैं सो समझता ही नहीं, सुनता ही नहीं। मैंने कहा कि क्यों रे नहीं जायगा ? उसने फिर सिर हिला दिया कि नहीं जाऊँगा । मैंने प्रकाश, अपने छोटे भाईको बुलाया । कहा, "प्रकाश इसे पकड़ कर ले जाओ।" प्रकाश ने उसे पकड़ा और आशुतोष अपने हाथ-पैरों से उसका प्रतिकार करने लगा । वह साथ जाना नहीं चाहता था। ___ मैंने अपने ऊपर बहुत जब्र करके फिर आशुतोष को पुचकारा, कहा कि जाओ भाई ! डरो नहीं। अपनी चीज घर में आयगी। इतनी-सी बात समझते नहीं। प्रकाश इसे गोदी में ले जाओ और जो चीज माँगे उसे बाजार से दिलवा देना। जाओ भाई आशुतोष। पर उसका मुँह फूला हुआ था। जैसे-तैसे बहुत समझाने पर वह प्रकाश के साथ चला। ऐसे चला मानो पैर उठाना उसे भारी हो रहा हो । आठ बरस का यह लड़का होने आया फिर भी देखो न कि किसी भी बात की उसमें समझ नहीं है। मुझे जो गुस्सा आया तो क्या बबलाऊँ । लेकिन यह याद करके कि गुस्से से बच्चे सम्भलने की जगह बिगड़ते हैं मैं अपने को दबाता चला गया। खैर वह गया तो मैंने चैन की साँस ली। लेकिन देखता क्या हूँ कि कुछ देर में प्रकाश लौट आया है। मैंने पूछा क्यों ? बोला कि आशुतोष भाग पाया है। मैंने कहा कि अब वह कहाँ है ?
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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