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________________ धीरे से कहा तिने दी थी न ? तुम्हारा छुन्न जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] जिस पर आशुतोष की माँ ने कहा कि नहीं तुम्हारा छुन्नू झूठ बोलता है । क्यों रे आशुतोष तैने दी थी न ? __ आशुतोष ने धीरे से कहा कि हाँ, दी थी। दूसरी ओर से छुन्नू बढ़कर आया और हाथ फटकारकर बोला कि मुझे नहीं दी। क्यों रे मुझे कब दी थी ? आशुतोष ने जिद बाँधकर कहा कि दी तो थी। कह दो नहीं दी थी? नतीजा यह हुओ कि छुन्नू की माँ ने छुन्नू को खूब पीटा और खुद भी रोने लगी। कहती जाती कि हाय रे, अब हम चोर हो गए । यह कुलच्छिनी औलाद जाने कब मिटेगी? ___ बात दूर तक फैल चली। पड़ोस की स्त्रियों में पवन पड़ने लगी। और श्रीमती ने घर लौटकर कहा कि छुन्नू और उसकी माँ दोनों एक-से हैं। मैंने कहा कि तुमने तेजा-तेजी क्यों कर डाली ? ऐसे कोई बात भला कभी सुलझती है ! बोली कि हाँ मैं तेज बोलती हूँ। अब जाओ ना, तुम्ही उनके पास से पाजेब निकालकर लाते क्यों नहीं ? तब जानूँ जब पाजेब निकलवा दो। ___मैंने कहा कि पाजेब से बढ़कर शान्ति है.। और अशान्ति से तो पाजेब मिल नहीं जायगी। श्रीमती बुदबुदाती हुई नाराज होकर मेरे सामने से चली गई। थोड़ी देर बाद छुन्नू की माँ हमारे घर आई । श्रीमती उन्हें लाई थीं। अब उनके बीच गर्मी नहीं थी। उन्होंने मेरे सामने आकर कहा कि छुन्नू तो पाजेब के लिए इनकार करता है। वह पाजेब कितने की थी मैं उसके दाम भर सकती हूँ।
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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