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________________ २२६ जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] गिनी, अपने पास ही रख और निकल जा इसी दम मेरे यहाँ से, बदमाश के बच्चे !" उसने हाथ जोड़कर कहा, "अच्छा माँजी, तो मैं चला जा ___"हाँ, जा, जा, जा!" -चिल्लाकर दादी ने कहा, "मेरा दम तोड़ने यहाँ क्यों खड़ा है ? जा, टल ।" अत्यन्त उद्धत होकर, मचलने को तैयार, रामू ने कहा, "लमअन्ना, अम लेबली खायेंगे।" रामचरण मुँह मुका बाहर निकलता चला आया। रामू को देखा भी नहीं। ___ रामू सुध-बुध खोया-सा चुप बैठा रहा और रामचरण बिल्कुल ओझल हो गया, तो बिना कुछ कहे वह लातों और थप्पड़ों से दादी को मारने लगा। __ इस रामू की मार को खाकर दादी में धन्य आनन्द का भाव ही उठा है, पर इस बार दादी ने जोर से दो चपत उसकी कनपटी पर जड़ कर कहा, "चुप बैठ सूअर के बच्चे !" और धक्के से उसे वहीं खाट पर लुढ़का कर बुढ़िया दादी झटके से उठ कर चलने लगी। रामू सिसक-सिसककर रोने लगा। उसके रोने की आवाज सुनकर फिर लौटीं और सिसकते बच्चे की पीठ पर और धौल जमाकर कहा, "रोता है ? ले रो!"-एक थप्पड़ और रख दिया। फिर तेजी से चलकर भीतर की कोठरी में घुस गई। वहाँ एक मटके में से गूदड़ निकाला और फिर दो मुट्ठी रुपए। उन्हें गिना, और फिर एक मुट्ठी और निकाले । पचास के ऊपर भी
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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