SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिल्ली बच्चा २१५ वह अभी किसी गिनती के लायक न थी । किन्तु, विजय के चल देने पर वह तो जैसे एक ही दिन में चालीस वर्ष की हो गई । उसका बिज्जी गायब हो गया । इस विषय में उसने न कुछ पूछा, न ताळा । वह बिल्कुल नहीं रोई । जब खाना दिया, खाना खा लिया, और काम कहा काम कर दिया । पर उसका हँसना उड़ गया था । न वह अब मचलती थी, न शिकायत करती थी । मैंने कहा, "बेटा शरबत !” उसके मुँह पर सुन कर कोई लाली नहीं आई। वह मेरे पास आ गई, आकर खड़ी हो गई । मानो कह रही हो, “वाबूजी, मुझे गोद में लेना चाहते हो तो ले लो। मैं खड़ी हूँ। मैं सामने हूँ तो ।” मैंने उसे गोद में खींचकर कहा, "बेटा शरबत !" ठोड़ी में डालकर कहा, "बेटा सरो, क्या बात है ?" उस समय वह रो पड़ती तो मेरा चित्त हल्का हो जाता । वह नरोई, न कुछ बोली । मैंने गोद में निकट खींच कर उसे चूमा, पुचकारा । मैंने कहा, "बेटा, बिज्जो तुझे याद आता है ? वह तो चला गया, बेटा । " I मेरा हृदय यह कहते-कहते आप ही भर आया । यह बात मुह से निकालने का साहस मैंने जान-बूझकर किया था, जिससे कि लड़की रोए तो । किन्तु वे शब्द निकलते-निकलते मुझे भी भर ये । मैंने देखा कि वह शरबती के भीतर तक भी गये हैं कि शरबती अभी सुबक उठेगी। मुझे उसके चेहरे पर दीखा कि उसके भीतर जैसे जम गई हुई वेदना छिड़ उठी है । वहाँ जैसे व्यथा में कुछ मन्थन हो उठा है। जैसे कि तट से फूट कर कुछ अवश्य बड़ेगा । लेकिन तट पर आ कर भी आँसू तट लाँघकर नहीं आए । वह नहीं रोई ।
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy