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________________ जनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] उधर से आँख फेर कर अँधेरे में ऊपर छत में आँख किये पड़ा रहा, सोचता रहा, लेकिन सोचता भी नहीं रहा । ऐसे कब झपकी आ गयी पता नहीं। लेकिन चार का घंटा साफ कान में आकर बजा। ___ आँख खुली। मुँह फेरा। देखता क्या हूँ कि माँ उठती हैं। सधी और दुबली देह । जाकर लालटेन उठाती हैं और लिये-लिये घर के काम-काज में लग जाती हैं। देखा और मैंने कस कर आँख मीच ली। फिर जा सोया तो उठा कहीं जाकर साढ़े आठ बजे। पाता हूँ कि सिर पर खड़ी माँ कह रही हैं, "यह सोने का वक्त है, रेचल उठ, मुंह हाथ धोके श्रा, नहीं तो तेरा दूध ठंडा हो रहा है।" । उठके देखता हूँ कि चुन्नू माँ के सामने बैठा दूध पी रहा है । चुन्नू ने कहा, "उठिये, भाई साहब।" मैंने खाट से झटपट खड़े होकर कहा, “लो, अभी आया ।"
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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