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________________ पढ़ाई १८३ चाहती । यों काम में माँ को अँगूठा दिखा कर भाग जाती है। माँ इससे बड़ी असन्तुष्ट है, “एक तो लड़की है, वह यों बिगड़ी जा रही है । बिगड़ जायगी तो फिर कौन सम्भालेगा? उन्हीं के सिर तो सब पड़ेगा। सो, वह भी औरों की तरह फिकर करना छोड़ बैठे, तो कैसे चले। उनकी और सुनन्दा की कहा-सुनी इस बात पर अक्सर हो जाती है। ___ बिट्टी की बुबा कहती है, "अरी, क्यों उसे धमकाया करती है। आखिर बच्ची ही तो है।" ____वह कहती हैं, “जीजी, बच्ची तो है, पर लाड़ बखत-बखत का होता है। लाड़ क्या मैं करना नहीं जानती ? पर, उमर होती है, और काम के बखत का लाड़ बिगाड़ ही करता है। और जीजी, काम से आदमी बनता है, लाड़ से तो कोई बनता नहीं है।" ऐसे समय नए कपड़ों को मैला बनाकर, नूनी यदि आ पहुँचती, तो अम्मा उसकी कहतीं, "क्यों, फिर खेलने बाहर पहुँच गई थी ! अब तू ठीक तरह पढ़ेगी नहीं ? अच्छी बात है।" ___और उनकी मुद्रा को देखकर नूनी बुआ की गोद के पास सरक जाती और बुआ उसे गोद में दुबका लेती। उस समय “नहीं जीजी, यह नहीं होगा" कहतीं, और नूनी को उस गोद में खींचती हुई वह ले जाती । उसे रुलाती, और फिर अपनी गोद में लेकर, तभी मँगाकर मीठी-मीठी बर्फी खिलातीं। उनके पेट की कन्या है, पर दुनिया बुरी है। उसने पढ़नालिखना जैसी भी चीज अपने बीच में पैदा कर रक्खी है। और उसी दुनिया में मास्टर लोग भी है, जो डंडा दिखाकर बच्चों को पढ़ा देंगे और आपसे रुपया लेकर पेट पाल लेंगे। और उसी दुनिया में एक चीज़ है प्रतिष्ठा । और भी इसी तरह की बहुत-सी चीजें
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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