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________________ तमाशा १२१ विनोद ने विजय-स्वर में कहा, "देखो-देखो । मैंने कहा । था न ?” लेकिन मुँह फैला नहीं, ऊपर को खुला । और बालक मुस्कराया नहीं, उसने जम्हाई ली । सुनयना ने कहा, "यह हँसी होगी ? बड़ी अच्छी हँसी है तुम्हारी !” विनोद के लिए किन्तु यह जम्हाई कम विस्मय और कम आह्लाद और कम रहस्य का पदार्थ नहीं है । कहा, “अरे, यह तो जम्हाई भी लेता है ! बिल्कुल हमारी तरह लेता है । देखा तुमने, बिल्कुल हमारी ही तरह इसने जम्हाई ली ? बिल्कुल वैसे ही मुँह नहीं फाड़ा ? यह कहकर जैसे विनोद कुछ सोच में पड़ गया । जैसे बुद्धि किसी गहरे तत्व के अनुसन्धान में चली गई है और बड़े भारी भेद की बात खोलने का काम उसपर आ पड़ा है । विनोद ने, बड़ी चिन्तित मुद्रा से पूछा, "क्यों जी, यह छींकता भी है ? सुनयना खिलखिलाकर हँस पड़ी । विनोद ने कहा, "तुम तो हँसती हो । सच बताओ, यह हमारी, तरह छींकता भी है ? सुनयना और भी हँसी, बोली, "यह क्या हो गया है तुम्हें ?" विनोद ने कहा, "अच्छा, जम्हाई लेता है, छींकता है; क्या वैसे अँगड़ाई भी लेता है ?" पत्नी की हँसी का क्या पूछना ? विनोद ने और पूछा, "और वैसे ही खाँसता है ? सुनयना खूब ही हँसी । हँसते-हँसते ही विनोद का हाथ पकड़
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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