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________________ “खा लिया।" वे नाराज थे । हों तो हों । मैं भी प्रद्युम्न को लिटा कर उसके बराबर लेट गई । उनसे बोली नहीं। वे भी किताब पढ़ते रहे। मुझे नींद नहीं आई थी; पर आँख बन्द किए लेटी थी। ऐसे समय प्रद्युम्न मेरी खाट से उठा और अपने बाबूजी के पास जाकर बोला, "बाबूजी !" ___ चौंककर उन्होंने मुंह फेरा । प्रद्युम्न को पास खड़ा देखकर कहा, "आओ, प्रद्युम्न, मेरे पास सोओगे ?” बचा पास बैठ तो. गया, लेटा नहीं । "क्यों, बैठे क्यों हो ? सो जाओ।" प्रद्युम्न ने कहा, "चोर रोशनी में नहीं आता, बाबूजी ?" उसके बाबूजी ने कहा, "नहीं, रोशनी में कोई चोर नहीं आता । और भाई, चोर भला कोई होता भी है ? सो जाओ।" लेकिन प्रद्युम्न नहीं सोया । थोड़ी देर बाद उसने पूछा"अँधेरे में आता है ?" ___उसके बाबूजी ने कहा, "क्या बकते हो, सो जाओ।" और उसे जबर्दस्ती लिटा दिया और अपनी किताब खोल कर पढ़ने लगे। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुड़ कर देखा होगा कि प्रद्युम्न अब भी आँख फाड़े ऊपर देख रहा है, सोया नहीं है ; क्योंकि तभी मैंने सुमा कि उन्होंने कहा, "अरे, अभी सोए नहीं तुम ?” कहकर उन्होंने किताब अलग रख दी और बटन दबा दिया। फिर प्रद्युम्न को छाती के पास खींच कर थपका-थपका कर सुलाने लगे। ऐसे उन्हें थोड़ी देर में नींद आ गई । मैं नहीं सोई थी । इतने में देखती क्या हूँ कि अँधेरे में टटोल-टटोल कर प्रद्युम्न मेरी खाट पर श्रा गया। मैंने उसे अपने में खींचकर फुसफुसाकर कहा, “बेटे, सो
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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