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________________ विषय पृष्ठ संख्या सत्य, मृत्यु की सार्थकता, मृत्यु के द्वार से अमरत्व, मृत्यु का भय । परिच्छेद–५ जैनेन्द्र के अह सम्बन्धी विचार १४५-१७७ जैनेन्द्र के साहित्य मे ग्रह की स्थिति, अह का अर्थ भारतीय और पाश्चात्य दर्शन, पाश्चात्य दर्शन, भारतीय दर्शन, जैनेन्द्र की दृष्टि मे अह, अह का स्वरूप, अह और आत्मा, जैनेन्द्र की अह दृष्टि और मनोविज्ञान, फ्रायड-मनोविज्ञान, फ्रायड और जैनेन्द्र की अह दृष्टि, जैनेन्द्र की मोलिकता, जैनेन्द्र की रचनाओ मे अह की स्थिति, समर्पण भाव, इरोस और सैडिज्म, काम ओर ब्रह्मचर्य, अहकार । परिच्छेद-६ जैनेन्द्र और समाज १७८-२०८ प्रेमचन्द-युग, जैनेन्द्र की सामाजिक दृष्टि, परिवार और विवाह, विवाह और प्रेम, परिवर्तनशील मान्यताए, प्रेम-विवाह, विवाह-विच्छेद, अन्तर्जातीय विवाह, काम-भावना, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध लिगत्वहीन, नैतिकता, वेश्यावृत्ति, समाज मे नारी का स्थान । परिच्छेद-७ जैनेन्द्र और व्यक्ति २०६-२४५ जैनेन्द्र के साहित्य मे व्यक्ति, व्यक्तिवादी जैनेन्द्र, परमार्थिक दृष्टि, मानव-नीति, जीवनादर्श दार्शनिक दृष्टि, जैनेन्द्र की दृष्टि मे आदर्श और यथार्थ, यथार्थ व्यथामूलक, पूर्णतावादी विचार, व्यक्ति अपूर्ण, व्यक्ति देवता नही, दलित भी माननीय, व्यक्ति टाइप नहीं, व्यक्ति और मनोविज्ञान, यथार्थ प्रकृतिवाद का पर्याय नही, परस्परता, आत्म-परिष्कार, व्यक्ति और समाज,
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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