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________________ जैनेन्द्र जीवन का संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण २६३ भौतिक और प्राध्यात्मिक ऐक्य जैनेन्द्र ने व्यक्ति से इतर बाह्य परिवेश के चित्रण मे ही समन्वयात्मक दृष्टिकोण को ही अपनाया है। भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के मध्य उन्होने एकता स्थापित करने का प्रयास किया है। उन्होने साहित्य मे वैज्ञानिक उपकरणो के प्रति अनास्था नही व्यक्त की है, उनकी दृष्टि मे यदि वैज्ञानिक अहभाव को त्याग कर श्रद्धा और प्रेम द्वारा अपने गन्तव्य की ओर अग्रसर हो तो जीवन में विनाश के स्थान पर प्रगति का मार्ग खुल जायगा। जैनेन्द्र ने 'वैज्ञानिक अध्यात्म' द्वारा विज्ञान और अध्यात्म की एकता की ओर इगित किया है। उनकी दृष्टि मे भौतिकवाद और विज्ञान को 'परे परे' करना आस्तिकता से इनकार करना है। क्योकि ये दोनो भी भगवान की ही देन है ।' उनका पूर्ण विश्वास है कि विज्ञान और अध्यात्म जब परस्पर सापेक्ष होकर घुलेमिलेगे, तो उसका सुफल यही हो सकता है कि राष्ट्रो के बीच परस्परता और प्रीति बढ़े, युद्धो की सम्भावना कम हो और एक विश्व-सस्कृति का विकास हो ।'२ जैनेन्द्र ने विज्ञान और अध्यात्म के सैद्धान्तिक पहलू को व्यावहारिक जीवन में स्थापित करने का प्रयास किया है । धार्मिक दृष्टि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आस्था और परस्परता का भाव जाग्रत करने में सक्षम है। जैनेन्द्र के अनुसार केवल भावना मे रहने वाली धार्मिक आस्था जीवन के लिए उपयोगी नही हो सकती। धन की सार्थकता और पूर्णता उसकी सक्रियता मे ही है। यदि धार्मिक भाव से अनुप्राणित होकर व्यक्ति कर्मशीलता की ओर उन्मुख हो तो विज्ञान और अध्यात्म की दूरी स्वत हो विलीन हो जाय । महात्मागाधी के जीवन को जैनेन्द्र ने सश्लिष्ट आदर्श के रूप में स्वीकार किया है। उनकी दृष्टि मे गाधी की महानता का रहस्य यही है कि उन्होने भेद मे से अभेद को और जीवन विज्ञान से अध्यात्म विज्ञान को क्षण के लिए विमुख और विलग नही हो ने दिया। जैनेन्द्र की दृष्टि मे भौतिक और आत्मिक द्वैत अद्वैतता एकता मे अर्थात् एकता में विलीन होने के लिए ही है। जैनेन्द्र ने अर्थ, राजनीति आदि क्षेत्रो मे धार्मिक आस्था का सन्निवेश करके हिंसा और शोषण का निषेध करने का प्रयास किया है। राजनीति और अर्थनीति को मानव नीति से सयुक्त करके उन्होने भौतिक जीवन को आत्मिक पृष्ठभूमि प्रदान करने का आदर्श प्रस्तुत किया है । परिपूर्ण १. जैनेन्द्रकुमार . 'समय और हम' (उपोद्घात से), पृ० स० ४० । २ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम' (उपोद्घात से), पृ० स० ४० । ३ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० स० १२२ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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