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________________ जैनेन्द्र परम्परा ओर प्रयाग प्रत्येक व्यक्ति अपने शाव को पीता हुआ चला जाता है, किसी पर अपने भाव उडेलता नही, बिखेरता नही ।' रहस्यमयता जैनेन्द्र के उपन्यास और कहानियो की एक बड़ी विशेषता, उसमे निहित गुह्यता और रहस्यमयता है । जैनेन्द्र के पात्रो का जीवन ऐसी भूल-भुलैया है जिसमे भटकने का भय सदा ही बना रहता है। उसमे घटनाओ द्वारा एक-केबाद दूसरे सत्य का उद्घाटन इस प्रकार होता है कि हम क्षण भर के लिए स्तम्भित रह जाते है । रचना का प्रारम्भ ही कुछ ऐसे ढग से होता है कि कहानी की भावी घटना का कुछ आभास ही नही मिलता । उस दृष्टि से 'अधे का भेद' तथा 'पान वाला' कहानी अपना विशिष्ट स्थान रखती है। एक सामान्य अन्धे भिखारी की कथा हमे कहा से कहा ले जाएगी, इसका हम प्रारम्भ मे अनुमान भी नही लगा सकते । रहस्य के खुलते ही अधा भिखारी हमारी रष्टि मे इतना ऊचा उठ जाता है कि हम उसकी कल्पना भी नही कर सकते । उनी भाति आखो मे सुरमा डाले छबीले पान वाले का क्या इतिहास हो सकता है तथा बाह्य साज-सज्जा और चचलता के पीछे एक गहन पीडा मे वह कराह रहा है, इसका हम अनुमान ही नही कर सकते । वह कौतूहल उत्पन्न करने वाला व्यवित अन्त मे बरबस हमारी सहानुभूति का पात्र बन जाता है । वस्तुत हम इस निश्कर्ष पर पहुचते है कि जैनेन्द्र घटनाओ मे ही नही, वरन् पात्रो के व्यक्तित्व की भी रहस्यमय सृष्टि करने मे दक्ष है। घटनात्मक दृष्टि से जैनेन्द्र की 'मौत का भय' कहानी मे सत्य को इतनी सफाई और सूक्ष्मता से छिपाते हुए चलते है कि कहानी का मूल भाव उत्तरोतर भय मिश्रित जिज्ञासा उत्पन्न कर देता है । जब हमारा भय और उत्सुकता अपने उत्कपं पर पहुचती है तब वे अपनी इतनी सफाई के साथ धीरे से दो-एक शब्दो मे सत्य का उद्घाटन करके तटस्थ हो जाते है और पाठक लेखक की चतुराई और लेखन-क्षमता पर चकित हो उठता है । प्रस्तुत कहानी मे लेखक का उद्देश्य मृत्यु दिखाना नही है, वरन् उसका भय दिखाना है । जिसमे वह पूर्णत सफल होता है । इस प्रकार लेखक ने अपने वर्णन-कौशल द्वारा जीवन के महान मत्य का उद्घाटन किया है। मौत के भय मात्र से व्यक्ति की स्थिति कितनी दयनीय हो जाती है और वह सोचने को विवश हो जाता है कि मौत कितना भयकर मत्य है, जिसके भय मात्र से ही व्यक्ति की स्थिति विषम हो जाती है। वस्तुत. जैनेन्द्र के अनुसार जिस प्रकार मानव जीवन सम्भावनाप्रो पर
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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