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________________ परिच्छेद-८ जैनेन्द्र : परम्परा और प्रयोग साहित्य मे उपन्यास का महत्व प्राधुनिक हिन्दी साहित्याकाश मे 'उपन्यास-कला' अपना एक अभूतपूर्व स्थान रखती है। यो कविता, नाटक और आख्यान के द्वारा मानव जीवन की अभिव्यक्ति का प्रयत्न होता रहा है, किन्तु उनमे जीवन की समग्रता और सहजता का अभाव था। व्यक्ति का जीवन प्रेम, घृणा और सहानुभूति तथा द्वेष आदि से पूर्ण है। उसमे राजनीति, समाज, धर्म, अर्थ आदि की सापेक्षता मे नाना सघर्षमूलक घटनाए घटित होती रही है। जीवन मे जहा सौन्दर्य, आकर्षण तथा शान्ति है, कुरूपता और क्षुद्रता तथा अशान्ति का भी स्थान है। मानव जीवन के इतने व्यापक परिवेश की समग्र अभिव्यक्ति एकमात्र उपन्यासो के द्वारा ही सम्भव हो सकती है। मानव जीवन की यथार्थता की अभिव्यक्ति मे उपन्यास जितनी उपयुक्त विद्या है, उतनी साहित्य की अन्य कोई विद्या नही है। उपन्यास का साहित्य मे वही स्थान है, जो प्राचीनकाल मे महाकाव्य का था। 'कविता मे शब्दो पर अधिक बल दिया जाता है और उसमे एक प्रकार की अपार्थिवता रहती है।' उपन्यास हमारे परिचित समाज, व्यक्तियो और तथ्यो का चित्रण करता है, तभी तो उपन्यास पढ लेने के उपरान्त हम कह उठते है-'ऐसा ही होता है।' इस प्रकार साहित्य के अन्य रूपो की अपेक्षा उपन्यास मे जीवन की यथार्थता, सत्यता, आवश्यकताए, सम्भावनाए और स्वतन्त्रता,
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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