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________________ २२८ जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन किया है, वह गॉधी-दर्शन है । गाधी और मार्क्स मानव जीवन प्रोर समाज को लेकर ऐसे मोड पर पहुचते है, जहा वे एक न होकर भी नही बन पाते। मतवाद मानव समाज मे विभिन्न वाद-प्रतिवाद दृष्टिगत होते है। विभिन्न वादो का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति और समाज की समस्याओं का समाधान करना है । साहित्य का काय मानव जीवन के सन्दर्भ मे विभिन्न वादो का विवेचन प्रस्तुत करना है। जैनेन्द्र के साहित्य मे किसी वाद-विशेष का सहारा नहीं लिया गया है । उनकी दृष्टि मे केवल-हित प्रधान है, वाद-विवाद की सकीर्णता उन्हे ग्राह्य नही है। विभिन्न साहित्यकार अपने साहित्य द्वारा विभिन्न वादो का प्रचार करते है । साहित्य का कार्य प्रचार करना नहीं है, केवल दृष्टि-दान करना है। यशपाल के साहित्य मे मार्क्सवाद का स्वर विशेषत मुखरित हुआ है। उन्होने मार्क्सवाद को स्वीकार करते हुए गाधीवादी नीति का विरोध किया है । जैनेन्द्र के साहित्य मे आग्रह की प्रवृति कही भी लक्षित नही होती । जैन धर्म के प्रभाव के कारण वे दृष्टि-विशेष को सत्य मानकर अन्य का निषेध करना उचित नही समझते । विभिन्न वाद स्वार्थपूर्ण दृष्टि रोकर अपने मत को अन्य पर थोपने का प्रयत्न करते है, किन्तु साहित्य का आदर्श राजनीतिक वाद-विवाद से पृथक है। साहित्य मे वाद आग्रहमूलक न होकर मानव-हित का पोषक होता है। जैनेन्द्र के साहित्य मे मानव जीवन की विविध समस्याओं पर विचार किया गया है। गरीबी-अमीरी, शोषक-शोपित, उद्योग वर्ग, प्रौद्योगीकरण, मजूरमालिक, प्रजातन्त्र आदि विषयो पर विशेष रूप से विचार किया गया है। अमीरी तथा पाश्चात्य सभ्यता के रग मे डूबे हुए समाज और सभ्यता के बीच तडपते और अन्तिम सास लेने वाले व्यक्ति से लेकर, समाज में विषाक्त फैताने वाले पूजीवाद का उन्होने सूक्ष्म विवेचन किया है । उनके साहित्य म विषय की विशुद्धता से अधिक उसकी गहनता दृष्टिगत होती है । अर्थनीति से इतर राजनीति मे हिसात्मक नीति का उन्मूलन करके अहिसक नीति द्वारा देश में शान्ति और शासकहीन राज्य की स्थापना की ओर उन्होने विशेषतया ध्यान आकर्षित किया है। जैनेन्द्र ने मार्क्सवाद, समाजवाद, साम्यवाद की विविध स्थितियो का सर्वक्षण करते हुए अपने साहित्य मे गाधी की सर्वोदय नीति को ही स्वीकार किया है । जैनेन्द्र का साहित्य भारतीय संस्कृति का पोषक है। उनकी रचनामो मे भारतीय सस्कृति और सुरक्षा का प्रयत्न पूर्णत लक्षित होता है। फ्रायड और मार्क्सवादी धाराए उनके साहित्य और विचारो को पूर्णत, अभिभूत नहीं कर
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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