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________________ परिच्छेद-१ जैनेन्द्र के जीवन-दर्शन की भूमिका दर्शन क्या है? ___“साधारण भापा मे 'दर्शन' का अर्थ है 'देखना' दार्शनि पनि पा का उद्देश्य समस्त ब्रह्माण्ड को एक साथ देखना अथवा सम्पूर्ण दृष्टि पारत करना कहा जा सकता है।" दार्शनिक का लक्ष्य सत्य का मादशात्कार करना है। सत्य का साक्षात्कार करने के प्रयत्न मे ही दार्शनिक साधक अथपाटा बग जाता है। बह वस्तु का वाह्य-निरूपरण अथवा मूत्याफन नहीं करता। वह तो आध्यात्मिक ओर भौतिक जगत मे अन्तर्भत अश्य सत्य की खोज करने का प्रयत्न करता है। इस दृष्टि से एक आस्था-परक प्राध्यात्मिक व्यक्ति भी दार्शनिक हो सकता है और विज्ञान के सहारे भौतिक सत्य का अन्वेपण करने वाला वैज्ञानिक भी दार्शनिक हो सकता है । क्योकि सत्य से कुछ भी बहिर्गत नही है और सत्य की खोज करना ही दार्शनिक का प्रमुख कतव्य हे तथापि वैज्ञानिक और आध्यात्मिक व्यक्ति की प्रक्रिया मे अन्तर है। यह अन्तर प्रारम्भिक स्तर पर विशेपरूप से द्रष्टव्य है, किन्तु जब वैज्ञानिक सत्य को वाह्य इन्द्रियो के माध्यम से न जानकर अतवृष्टि, सबुद्धि से जानने का प्रयास करता है, तब वही वैज्ञानिक दार्शनिको की श्रेणी मे आ जाता है। वैज्ञानिक मबुद्धि के द्वारा प्राप्त ज्ञान का बुद्धि के आधार पर विश्लेषण करता है । प्रज्ञा को १ डा० देवराज 'भारतीय दर्शन शास्त्र का इतिहास', प्र० स०, १९४१, इलाहाबाद, प० १६६।।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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