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________________ जैनेन्द्र के अह सम्बन्धी विचार क्योकि एक ही वस्तु सन्दर्भ भेद के कारण कर्ता है और कृत्य भी है। पाश्चात्य दर्शन का विवेचन करते हुए श्री अलबरी कास्टल महोदय ने अह के सब्जेक्टिव और आब्जेक्टिव रूप की पूर्ण विवेचना की है। जैनेन्द्र के साहित्य का विवेचन करते हुए ज्ञात होता है कि अह चेतनजीव अथवा मानव प्राणी मे ही नहीं होता, वरन् जड पदार्थों मे भी अहता विद्यमान होती है। पेड, पौधे, ईट, पत्थर आदि जड पदार्थों में भी अहभाव होता है, क्योकि वे स्वय मे विशिष्ट है। किन्तु जड वस्तु की अहता तथा चेतन व्यक्ति की अहता मे अन्तर है। व्यक्ति चेतन प्राणी है, उसमे आत्मोन्मुख होने की क्षमता है । वह प्रेम, घृणा आदि भावो से युक्त तथा सवेदनशील है, किन्तु जड पदार्थ चेतना हीन है। पदार्थ की वस्तुता व्यक्ति की अहता द्वारा ही ज्ञात होती है। 'मै' ह के साथ ही मेरी सपत्ति भी मै से सबद्ध है। जैनेन्द्र के साहित्य मे प्रकृति को प्रतीक रूप मे वरिणत करते हए उसे अहभावना से युक्त किया है। 'तत्सत कहानी मे 'मैं' 'तम' का भेद वन के वृक्षो मे अह बोध को जाग्रत कर देता है। वे समष्टि रूप मे स्वय को नहीं समझ पाते । बास का वृक्ष केवल 'बास' ही है वह जगल नही है। इस प्रकार उनकी अह भावना ही उन्हे समग्र बोध से परे रखती है । उनके साहित्य मे प्रकृति अहता का विसर्जन करते हुए ही दृष्टिगत होती है। सूर्य पृथ्वी के आकर्षण तथा विराट् प्रकृति के विनत समर्पण मे अहता के विसर्जन का ही भाव प्रदर्शित होता है । जैनेन्द्र के अनुसार जड चेतन प्रत्येक मे एक ही आत्मा का निवास है। समस्त सृष्टि मे एक परब्रह्म की ही सत्ता व्याप्त है । अरस्तू के अनुसार जड, चेतन, पशु आदि मे भिन्न प्रात्माए निवास करती है। उपरोक्त विचारो से इतर जैनेन्द्र ने अह के सम्बन्ध मे अपनी मौलिक विचारधारा प्रस्तुत की है । उन्होने अह को 'क्रास प्वाइण्ट" के रूप मे स्वीकार किया है। क्रास प्वाइण्ट से उनका तात्पर्य उस बिन्दु से है जिस बिन्दु पर काल और आकाश एक-दूसरे को काटते है। काल और आकाश अनन्त है, वे १ 'मेरी सम्पत्ति, मेरी चीज आदि वह भी अपने आप मे अहशून्य है। उसमे भी सब्जेक्टिविटी है।'-जैनेन्द्रकुमार जैनेन्द्र के विचार', दिल्ली, पृ० स० ६०। २ जैनेन्द्रकुमार 'जैनेन्द्र प्रतिनिधि कहानिया,' पृ० १६४ । 3 “Aristotle no doubt draws a line of distinction between the Plant soul, the animal soul and the human soul' ___Roy -'Concept of self'-(p 8) ४ जैनेन्द्र कुमार 'समय और हम', पृ० स० ५२८ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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