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________________ जैनेन्द्र की दृष्टि से भाग्य, कर्म-परम्परा एव मृत्यु १४३ रूप की कल्पना को भयकर और विकराल बना दिया है ।' अन्यथा यमराज तो व्यक्ति की विपदाओ से मुक्ति दिलाने मे ही सहायक है । मौत के सम्बन्ध मे अत्यधिक सतर्कता रखने तथा उस सम्बन्ध मे अधिक उपदेशादि देने से मौत की उत्तीर्णता नही व्यक्त होती वरन् मौत का मन ही प्रतीत होता है ।" जैनेन्द्र के अनुसार 'उसका ( मौत का ) श्राकर्षण है तो समझो उसका भय है ।' जब व्यक्ति वैराग्य का बहुत अधिक उपदेश देता है और मन की सच्चाई को व्यक्त करना चाहता है, तब उसके मन मे निश्चय ही कोई अवश्य छिपा होता है । और वह भोग से भोग की ओर ही उन्मुख होना चाहता है । यान 'मौत पर" कहानी मे मौत के अस्तित्व और उसकी सत्यता पर लम्बा प्रवचन दिया गया है, किन्तु अन्त मे वही प्रवक्ता अपनी भावनाओ को नियंत्रित नही कर पाता और अतत भोगोन्मुख ही होता है । " मौत से बचने और डरने वाला व्यक्ति सदैव जीवन से चिपटा रहता है । 'जयवर्धन' मे जैनेन्द्र ने बताया है कि 'मौत को सतत् भीतर लेकर जीना असल जीना है । यह जीना मर कर होता है ।" 'जैनेन्द्र - साहित्य का प्रमुख आदर्श त्याग और परमार्थ मे ही फलित होता है । यही कारण है कि उन्होने 'जयवर्धन' मे द्विज से सय व्यक्ति के बलिदान की भस्म से फूटने वाले जीवन को ही सच्चा जीवन माना है । उनकी दृष्टि मे जीवन पकडने मे नही छोडने मे है, भोग मे नही यज्ञ मे है । " जब व्यक्ति की वासना सासारिक भोगो मे लगी होती है, तभी वह मौत से चितित प्रतीत होता है । जैनेन्द्र के उपरोक्त विचारो में उनकी दार्शनिकता की स्पष्टत झलक मिलती है । दर्शन कोई विशिष्ट प्रक्रिया नही है । दर्शन जीवन के विविध शाश्वत सत्यों को गहराई से देखने की अन्तदृष्टि है । जैनेन्द्र ने जन्म-मृत्यु के आध्यात्मिक १ 'यम का रूप विकराल है क्योकि वह हमारे ही भय का रूप है । कल्पना की विकृति है वस्तुत विधाता की ओर के ये जो यमराज है वही तो धर्मराज है ।' - जैनेन्द्र कुमार ' इतस्तत', पृ० १०६ । २. ' मौत से घबडाना मौत बुलाना है' -- जैनेन्द्रकुमार 'साहित्य का श्रेय और प्रेय' पृ० २३८ । ३ जैनेन्द्र की कहानिया, भाग ८, पृ० १७६ । ४. जैनेन्द्रकुमार 'जयवर्धन' पृ० ११ । ५. जैनेन्द्रकुमार ' जयवर्धन' पृ० ११ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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