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________________ जैनेन्द्र की दृष्टि में भाग्य, धर्म-परम्परा एव मृत्यु १४१ दिन रहकर व्यक्ति की मृत्यु अनिवार्य हो जाती है । इस प्रकार जैनेन्द्र ने उपरोक्त कहानी द्वारा इस तथ्य को प्रमाणित किया है कि मृत्यु अनिवार्य है । जैनेन्द्र के साहित्य मे उनकी मृत्यु सम्बन्धी विवेचना दो रूपो मे अभिव्यक्त हुई है । एक स्वीकारात्मक तथा दूसरा निषेधात्मक | जैनेन्द्र का विश्वास है व्यक्ति का आकर्षण जिस प्रोर होता है, उसकी विपरीत दिशा में ही वह भागता है । यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है जिसकी सत्यता व्यावहारिक जीवन मे स्पष्टत दृष्टिगत होती है । मृत्यु के द्वार से अमरत्व जैनेन्द्र के अनुसार शहीद तथा परमार्थ की ओर उन्मुख रहने वाले व्यक्ति को मौत की कोई चिन्ता नही होती । वह अपने कर्तव्य मे इतना लीन रहता है। कि उसके समकक्ष निरर्थक सिद्ध होता है । जैनेन्द्र के उपन्यास और कहानियो मे जीवन की आहुति देने वाले पात्र सहर्ष मृत्यु का आलिंगन करते है, किन्तु मौत के लिए उत्सुक नही होते । उनकी दृष्टि मे 'मौत' ऐसी तुच्छ वस्तु है, कि उसका चाहना लज्जास्पद है । चाहने को मेरे पास बडी वस्तु है । "फासी" मे शमशेर मौत के प्राचल मे मुह छिपाकर जीवन सघर्ष से बचना नही चाहता, किन्तु जब मौत के द्वारा ही परमार्थ सम्भव हो रहा है तो वह उसकी उपेक्षा भी नही करता । यही जैनेन्द्र के साहित्य का अभीष्ट है । उनके अनुसार जीवन की सार्थकता मौत के सम्बन्ध मे विचार करने से अधिक उसे सामने लेने है । जैनेन्द्र के साहित्य मे व्यक्ति मर कर अमरत्व प्राप्त करने में आस्था रखता है । मृत्यु पर कोई विजय नही प्राप्त कर सकता, किन्तु मरकर व्यक्ति सहज ही अमर हो जाता है । जीवन और मृत्यु के बीच जैसे रेखा उनके लिए हुई ही नही । ' ' कहानी की कहानी' मे लेखक ने गाधी जी की मौत द्वारा उनकी १ मेरी मौत मे दुनिया की अर्थ सिद्धि है, मेरी भी परमार्थ सिद्धि है । विश्व, का अर्थ सिद्ध करने व्यक्ति की मौत आती है । परमात्मा उसे भेजता है । व्यक्ति क्यो न उसे साथ ले ओर आगे बढे ।' जैनेन्द्र 'प्रतिनिधि कहानिया', सम्पादक- शिवनन्दनप्रसाद, प्र० स०, पृ० २४ । २ 'मौत को सामने लो'-' -'जैनेन्द्र की कहानिया', (दर्शन की राह ), पृ०१३४ । ३. जैनेन्द्रकुमार 'अनतर', पृ० ४७ । •
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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