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________________ १३२ जैनेन्द्र का जोवन-दर्शन नही उत्पन्न करता । वस्तुत जैनेन्द्र ब्रह्म को ही एकमात्र निरपेक्ष शक्ति अथवा सत्ता के रूप मे स्वीकार करते है, आध्यात्मिक या व्यावहारिक दृष्टि से पुनर्जन्म नित्य सत्य नही है। वैज्ञानिक सिद्धातो के आधार पर अवश्य वह सिद्ध किया जा सकता है । अह के प्रकट और विलय होने का चक्र चलता रहता है, किन्तु अह के साथ व्यक्ति के सूक्ष्म मन, बुद्धि आदि का मृत्यु के बाद कोई सम्बन्ध नही रहता । उसकी चेतना ब्रह्माण्ड मे व्याप्त होकर अकाल की हो जाती है। भारतीय दर्शन और पुनर्जन्म जैनेन्द्र हिन्दु धर्म और विश्वासो के समर्थक है । उनका दर्शन आस्तिकता का पोषक है । भारतीय दर्शन मे आस्तिकता का मूल स्रोत वेदान्त है । वेदान्त मे आत्मा की अमरता के आधार पर पुनर्जन्म की स्थिति को स्वीकार किया है। 'वायु गध के स्थान से गध को जिस प्रकार ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादियो का स्वामी जीवात्मा भी जिस पहिले शरीर को त्यागता है, उससे इन मन सहित इन्द्रियो को ग्रहण करके, फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमे जाता है । स्वामी विवेकानन्द ने अपनी पुस्तक 'मरणोपरान्त' मे शोपनहायर के विचारो द्वारा पुनर्जन्म के विषय पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार • 'मृत्यू रूपी नीद मे से नया प्राणी बनकर दूसरी बुद्धीन्द्रिय को साथ लेकर पुन प्रकट होता है, नया दिवस उसे नये प्रदेशो की ओर ललचाता है । (यह क्रम) तब तक चलता है, जब तक कि बारम्बार के नये शरीरो मे अधिकाधिक भिन्न-भिन्न प्रकार के ज्ञान के द्वारा शिक्षित और उन्नत होकर वह अपना ही अभाव करके अपने को विलुप्त न कर दे।' उनके अनुसार 'यथार्थ मे तो नए प्रकट होने वाले प्राणियो के जन्म से जीर्ण होने वालो की मृत्यु से उसका सम्बन्ध रहता ही है । 'रामचरितमानस' मे गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी पूर्वजन्म व पुनर्जन्म को स्वीकार किया है। इसका प्रमारण कागभुषुण्डि की कथा १ 'न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय । अजो नित्य शाश्वतोऽय पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।' -श्री मद्भगवद्गीता अध्याय २।२० २ शरीर यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर । गृहीत्वैतानि सयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥ अध्याय १५ ३. विवेकानन्द , ‘मरणोपरान्त' पृ० १२ ।
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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