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________________ ( ३ ) [६] आर्जव आर्जव सग्लभाव को योलते है । सरलभावदी सहजभाव है। यह मनुप्यमात्र का भूपण है। जिसमें सरलता और सहजता नही है, वह दिखावट बनावट पर मरता रहता है और जिसमे यह है उसे किसी भूषण की अथवा वनावटी शृङ्गार की आवश्यक्ता नहीं है। जो जैसा है अन्त में वैसा प्रगट होकर रहता है। मनुष्य लाखरूप बनाये लाख बहुरूप धारण करसंभव है कुछ दिन यह चाल उसकी चल जाय । परन्तु अन्तमे भन्डा फूट ही जाता है। "काल समय जिमि रावण राह। उधरै अन्त न हुइ है निबाह । ___ सहजवृत्ति सब में उत्तम है। इससे उतर कर साहित्यस्वाध्याय है। इससे बहुत नीचा देशाटन है। परन्तु सहजवृत्ति क्या है ? इसका समझना कठिन है। इन तीनों से ही तजुर्वे बढते है और मनुष्य में समझबूझ आती जाती है और यह समझ बूझ समय पर उसे सरलभाव वाला बना देती है। जो जैसा हो वैसा होकर दिखाना किसी को नहीं भाता। सब वनावट और दिखावट में पड़े रहते हैं । यह बनावट अधिक समय तक नहीं चलतीऔर अन्तमें ममुष्य आप उससे
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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