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________________ ( २६ ) प्राया, किन्तु सुख पहुंचाने आया हूं। हे भको । मेरा कर्तव्य विंधाने का नहीं केवल चुडाने का है। मै तुमको ऐसी आशा फभी न दूंगा और यदि तुम भूलकर ऐसा करोगे तो मैं समझूगा कि तुम श्रावक धर्म से पतित हो गए!" बह श्रावक भगवान के वचन सुनकर दंग रह गए। भगवान ने उनसे कहा-“हे श्रावको! यदि कोई पागल तुम्हारे साथ अनुचित व्यवहार करे ? तो तुम उससे क्या बदला लोगे ? क्या तुम भीअनुचित व्यवहारक्रोगे, वह निवुद्धिपागल है, उसमें समझ नहीं है-तुममें समझवझ है। तुम क्षमा करो। “ऐ जैनियो ! जिन धर्म यह सिखाना है कि तुम वैर भाव का परित्याग करके इन्द्रियदमन करो! मनका शमन हो जाय ! इन्हें जीतलो और जब तुम इनको जीत लोगे तो सच्चे जैनी होगे । हे भाइयो ! निःसन्देह तुमने शत्रुओं पर विजय पाने के लिये मनुष्य जन्म धारण किया है। तुम्हारे शत्रु काम, क्रोध, लोभ, मोह और श्राहकार हैं । यदि तुमको जीतने का विचार है, तो इनको जीतो । पागलो और अनसमझ प्राणियों के पीछे क्यों पड़े हो ? इनकी ओर से उदासीनता कात ग्रहण करो।" भगवान यह कह कर चुप हो रहे । श्रावको ने उनके उपचार और विनय किये । यह क्षमा है और यह उत्तम क्षमा है. यह पपा श्वेताम्बर जैनग्रन्थ के अनुमार है, दिगम्बर शानो में ना वईना म्वामी का चरित्र है, इसमें यह बात नहीं मिलती है।
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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