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________________ [३] परिभाषाओं में जैन धर्म की जड़ किसकी विजय करना है ? और कौन विजय करने वाला है? यह दो प्रश्न है । महावीर स्वामी ने इनका निर्णय इस सुन्दरताई से किया है कि पक्षपाती और हठधर्मी मनुष्यों के सिवाय दुसरे कभी भी उनके सिद्धान्त फा खराहन करने के लिए उद्यत नहीं होंगे! वह कहते है यह जगत् जीवामीव है अर्थात् जीव और अजीव से भरा हुआ है। अजीध विजय किये जाने के पदार्थ है और जीव को विजय प्राप्त करना है । यह जैनमत का निचोड है ! यही संसार में हो रहा है। जहां मनुष्य की दृष्टि खुली और नो वस्तु उसकी दृष्टिगोचर हुई उसी समय वह उसके पकड़ने और वश में लाने के लिये हाथ फैलाता है । बच्चों में देखो-पशुओं में देखो तमाम जीवधारी जन्तुओं के जीवन में देखो। इस जगत् में हो क्या रहा है ? मनुष्य का छोटा बालक यदि सांप को देखेगा नो उसे हाथ से पकह कर अपने मुंहमें रखने का उद्योग करेगा। यही दशा पशुओं की भी है । इस सचाई से कौन इंकार कर सकता है ? अब रही यह यात कि बच्चों का करतब पान के साथ है या अशान के साथ ! यह दूसरी बात है । यह न हमारा इस समय आशय है और न हम इस पर अधिक अपना भाव प्रगट करने का समय रखते है । यह जीव का प्राकृतिक स्वभाव त
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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