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________________ ८] जैनधर्ममें दैव और पुरुषार्थ । भावार्थ-प्रोफेसर विलियम मैकडोंगल अपनी पुस्तक-" फीजिओलजिकल सकोलोजी" में लिखते है-मको मजबूर होकर मानना पड़ता है कि अन्त करणके कार्य किसी एक पदार्थक कुछ काम हैं। यह पदार्थ मगजका कोई भाग नहीं है न यह कोई जड पदार्थ है । किन्तु यह सब जड पदार्थोसे जुदा है। उसे हम एक अमूक पदार्थ या जीव मान सकते है। जहांतक बुद्धिसे विचार किया जाना हे जडसे भिन्न चेतन शक्तिका मानना जरूरी व ठीक जंचता है। केवल हाएक आत्मा जडसे चेतन शक्तिका काम नहीं हो सक्ता है। भिन्नर है। चेतन शक्ति हरएक शरीरधारी प्राणीमें स्वतंत्र व भिन्न २ है या एक किसी ईश्वर या ब्रह्मका अंश है। इस वातपर विचार किया जावे तो यही समझमे आता है कि हाएक चेतन शक्तिधारी आत्माकी सत्ता भिन्न २ है। क्योंकि एक ही जालमें जगतकी आत्माओंमें भिन्न २ भाव या कार्य देखे जाते हैं। ___कोई शांत है तो कोई क्रोधी है, कोई अज्ञानी है तो कोई झनी है, कोई भक्ति करता है, कोई व्यापार करता है, कोई जागता है कोई सोता है, कोई विद्या पन्ता है. कोई विद्या पहाता है, कोई जन्मता है, कोई प्राण त्यागता है, कोई सुखी है, कोई दुखी है. कोई रोता है, कोई हंसता है। यदि एक ही ईश्वर या ब्रह्मके अंग हो तो सब एकरूप रहने चाहिये। यदि ईश्वर शुद्ध व निर्विकार है तो सब प्राणी शुद्ध व निर्विकार रहने चाहिये। यदि ईश्वर अशुद्ध है व विकारी है तो सब अशुद्ध व विकारी रहने चाहिये । यदि
SR No.010351
Book TitleJain Dharm me Dev aur Purusharth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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