SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म का प्राण ५९ प्रवर्तक धर्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए गृहस्थाश्रम जरूरी है । उसे लाघ कर कोई विकास कर नही सकता । व्यक्तिगामी निवर्तक धर्म निवर्तक-धर्म व्यक्तिगामी है । वह आत्मसाक्षात्कार की उत्कृष्ट वृत्ति मे से उत्पन्न होने के कारण जिज्ञासु को आत्मतत्त्व है या नही, है तो वह कैसा है, उसका अन्य के साथ कैसा सबध है, उसका साक्षात्कार सभव है तो किन-किन उपायो से सभव है, इत्यादि प्रश्नो की ओर प्रेरित करता 1 है । ये प्रश्न ऐसे नही है कि जो एकान्त चिन्तन, ध्यान, तप और असगतापूर्ण जीवन के सिवाय सुलझ सके । ऐसा सच्चा जीवन खास व्यक्तियो के के लिए ही सभव हो सकता है । उसका समाजगामी होना संभव नही । इस कारण प्रवर्तक-धर्म की अपेक्षा निवर्तक-धर्म का क्षेत्र शुरू मे बहुत परिमित रहा । निवर्तक धर्म के लिए गृहस्थाश्रम का बंधन था ही नही । वह गृहस्थाश्रम बिना किये भी व्यक्ति को सर्वत्याग की अनुमति देता है, क्योकि उसका आधार इच्छा का सशोधन नही पर उसका निरोध है अतएव निवर्तक-धर्म समस्त सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यो से बद्ध होने की बात नही मानता । उसके अनुसार व्यक्ति के लिए मुख्य कर्तव्य एक ही है और वह यह कि जिस तरह हो आत्मसाक्षात्कार का और उसमे रुकावट डालनेवाली इच्छा के नाश का प्रयत्न करे । निवर्तक धर्म का प्रभाव व विकास जान पडता है, इस देश मे जब प्रवर्तक - धर्मानुयायी वैदिक आर्य पहले-पहल आये तब भी कही न कही इस देश मे निवर्तक-धर्म एक या दूसरे रूप प्रचलित था । शुरू मे इन दो धर्म-सस्थाओ के विचारो में पर्याप्त सघर्ष रहा, पर निवर्तक-धर्म के इने-गिने सच्चे अनुगामियो की तपस्या, ध्यानप्रणाली और असगचर्या का साधारण जनता पर जो प्रभाव धीरे-धीरे बढ रहा था उसने प्रवर्तक-धर्म के कुछ अनुगामियो को भी अपनी ओर खीचा और निवर्तक-धर्म की सस्थाओ का अनेक रूप मे विकास होना शुरू हुआ । इसका प्रभावकारी फल अन्त में यह हुआ कि प्रवर्तक धर्म के आधार रूप
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy