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________________ १० जैनधर्म का प्राण और उसकी शक्यता भी नही होती । अत इस धर्मवृत्ति को धर्मदृष्टि की कोटि में नही रखा जा सकता । एक मानव प्राणी ही ऐसा है जिसके भीतर धर्मदृष्टि के बीज स्वयम्भू रूप से पडे है । वैसे बीजों मे उसकी ज्ञान और जिज्ञासावृत्ति, सकल्पशक्ति और अच्छे-बुरे का विवेक करने की शक्ति तथा ध्येय को सिद्ध करने का पुरुषार्थ -ये मुख्य है | मनुष्य के जितना भूतकाल का स्मरण अन्य किसी प्राणी मे नही है । उसके जितनी भूतकाल की विरासत सम्हालने की और भावी पीढियो को उस विरासत मे कुछ अभिवृद्धि करके देने की कला भी और किसी मे नही है । वह एक बार कुछ भी करने का सकल्प करता है तो उसे साधकर ही रहता है और अपने निर्णयो को भी, भूल ज्ञात होने पर, बदलता और सुधारता है । उसके पुरुषार्थ की कोई सीमा नही है । वह अनेक नये-नये क्षेत्र खोजता है और उनमे प्रवृत्ति करता है । मानवजाति की यह शक्ति ही उसकी धर्मदृष्टि है । परन्तु मानवजाति में इस समय धर्मदृष्टि के विकास की जो भूमिका दिखाई देती है, वह सहसा सिद्ध नही हुई। इसका साक्षी इतिहास है। एडवर्ड केर्ड नाम के विद्वान ने धर्मविकास की भूमिकाओ का निर्देश सक्षेप में इस प्रकार किया है We look out before we look in, and we look in before we look up. डॉ. आनन्दशकर ध्रुव ने इसे समझाते हुए कहा है कि " प्रथम बहिर्दृष्टि, फिर अन्तर्दृष्टि और अन्त मे ऊर्ध्वदृष्टि । प्रथम ईश्वर का दर्शन बाह्य सृष्टि मे होता है, पश्चात् अन्तरात्मा मे ( कर्तव्य का भान इत्यादि मे ) होता है और अन्त मे उभय की एकता मे होता है ।" जैन परिभाषा के अनुसार इनको बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा की अवस्था कह सकते है । मनुष्य चाहे जैसा शक्तिशाली क्यों न हो, परन्तु वह स्थूल मे से अर्थात् द्रव्य मे से सूक्ष्म मे अर्थात् भाव में प्रगति करता है। यूनान मे शिल्प, स्थापत्य, काव्य, नाटक, तत्त्वज्ञान, गणित आदि कलाओ और विद्याओं का एक काल में अद्भुत विकास हुआ था । वैसे समय में ही एक व्यक्ति मे अगम्य रूप से धर्मदृष्टि, मानवजाति को चकाचौध कर दे उतने परिमाण मे, विकसित हुई । उस सुकरात ने कलाओ और विद्याओ का मूल्य ही धर्म
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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