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________________ : १८ : पर्युषण और संवत्सरी जैन पर्वो का उद्देश्य जैन पर्व सबसे अलग पडते हैं। जैनों का एक भी छोटा या बड़ा पर्व ऐसा नही है जो अर्थ या काम की भावना मे से अथवा तो भय, लालच और विस्मय की भावना मे से उत्पन्न हुआ हो, अथवा उसमे पीछे से प्रविष्ट वैसी भावना का शास्त्र से समर्थन किया जाता हो। निमित्त तीर्थकरो के किसी कल्याणक का अथवा कोई दूसरा हो, परन्तु उस निमित्त से प्रचलित पर्व या त्योहारों का उद्देश्य सिर्फ ज्ञान और चारित्र की शुद्धि एव पुष्टि करने का ही रखा गया है। एक दिन के अथवा एक से अधिक दिनों तक चलनेवाले त्योहारो के पीछे जैन परम्परा मे मात्र यही एक उद्देश्य रहा है। पर्युषण पर्व : श्रेष्ठ अष्टाह्निका लम्बे त्योहारों में खास छ: अष्टाह्निकाएँ (अट्ठाइयाँ) आती हैं । उनमे भी पर्युषण की अट्ठाई सबसे श्रेष्ठ समझी जाती है। इसका मुख्य कारण तो उसमे आनेवाला सावत्सरिक पर्व है। इन आठो दिन लोग यथाशक्य धधा-रोजगार कम करने का, ज्ञान-तप बढाने का, ज्ञान, उदारता, आदि गुणों को पोसने का और ऐहिक एवं पारलौकिक कल्याण का प्रयत्न करते है। जहाँ देखो वहाँ जैन परम्परा मे एक धार्मिक वातावरण, आषाढ़ मास के बादलों की भाँति, घिर आता है। ऐसे वातावरण के कारण इस समय भी इस पर्व के दिनों मे नीचे की बाते सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है : (१) दौड़धूप कम करके यथाशक्य निवृत्ति और अवकाश प्राप्त करने का प्रयत्न, (२) खाने-पीने और दूसरे कई भोगो पर कमोबेश अकुश, (३) शास्त्रश्रवण और आत्मचिन्तन की वृत्ति, (४) तपस्वी, त्यागियों
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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