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________________ ११ : जीव और पंच परमेष्ठी का स्वरूप प्र० --- परमेष्ठी कौन कहलाते है ? उ०- जो जीव परम मे अर्थात् उत्कृष्ट स्वरूप मे समभाव मे ठिन् अर्थात् स्थित है, वे ही परमेष्ठी कहलाते है । ? प्र० -- परमेष्ठी और उनसे भिन्न जीवो मे क्या अन्तर है उ०—अन्तर आध्यात्मिक विकास होने न होने का है । अर्थात् जो आध्यात्मिक विकासवाले व निर्मल आत्मशक्तिवाले है वे परमेष्ठी, और जो मलिन आत्मशक्ति वाले है वे उनसे भिन्न है । प्र० - जो इस समय परमेष्ठी नही है, क्या वे भी साधनो द्वारा आत्मा को निर्मल बनाकर वैसे बन सकते है ? उ०- अवश्य । प्रoतब तो जो परमेष्ठी नही है और जो है उनमे शक्ति की अपेक्षा से भेद क्या हुआ ? उ० – कुछ भी नही । अन्तर सिर्फ शक्तियो के प्रकट होने न होने का है । एक मे आत्मशक्तियो का विशुद्ध रूप प्रकट हो गया है, दूसरो मे नही । जीव के सम्बन्ध में कुछ विचारणा जीव का सामान्य लक्षण प्र० - जब असलियत मे सब जीव समान ही है, तब उन सबका सामान्य स्वरूप (लक्षण) क्या है। ? उ०—रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि पौद्गलिक गुणो का न होना और चेतना का होना यह सब जीवो का सामान्य लक्षण है । प्र०— उक्त लक्षण तो अतीन्द्रिय -- इन्द्रियो से जाना नही जा सकने - बाला -- है; फिर उसके द्वारा जीवों की पहिचान कैसे हो सकती है ?
SR No.010350
Book TitleJain Dharm ka Pran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1965
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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