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________________ किसी का भी उत्थान अथवा पतन अपने ही गुणों अथवा दोषों से होता है । राजाओं से शासन-सत्ता जाने का कारण भी उनको मानसिक, बौद्विक, अथवा अन्य निर्बलता थी तो यवन शासन के चले जाने का कारण मा उनकी वही न्यूनता थी । यदि जाति भेद ही यवन-शासन को विदाइ में कारण होता तो यवनों में भा शिया और सुन्नी ऐसो दो प्रबल जातियां के अतिरिक्त शेख, सत्यद, तुगलक मुगल, पठान, आदि अनेक जातियां है। शासन, शासन के नियमों के उल्लंघन करने एवम दुर्नीति पर उतर जाने से ही जाता है, जाति भेद के कारण न शासन जा सकता और न आ ही सकता । ३।। वर्ष पूर्व भारत को स्वतंत्रता मिली थी तब भारत में जातिभेदों की कमी नहीं थी। कमसे कम उस समय १०००० जातियां होंगी परन्तु फिर भी स्वतंत्रता मिली। जाति भेद ने स्वतंत्रता में क्या कोई बाधा डाली ? क्या किमी ने भी यह कहा कि यह स्वतंत्रता अमुक जाति के व्यक्ति को ही मिलनी चाहिये ? क्या किस जाति के लोगों ने स्वतंत्रता-लाभ में जरा सो भी बिप्रतिपत्ति की थी ? श्राज भो यह कोई नहीं कहता है कि अमुक जाति का ही राज्य हो, फिर भी जाति भेद से परतत्रता की बात कहना एक बादरायण संबंध जैसी बात है। भारतबर्ष से अंग्रज अपनी प्रांतरिक विषम परिस्थिति के कारण ही गये हैं। उनको भातरी परिस्थिति ऐसी हो गई थी कि वे भारत में शासन चला नहीं सकते थे। इसके साथ २
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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