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________________ नवीन रचना नहीं की थी। यदि यों वर्तमान वृत्ति भेद से जाति-परिवर्तन होने लगे तो बड़ी भारी अव्यवस्था हो सकती है और कभी किसी का कुछ पता ही न रहे-क्योंकि प्रत्येक आदमी ही प्रायः प्रातः काल उठकर शौचादि करता है तो हरिजन शूद्र हुआ, पीछे अपने घर में झाडू बुहारी करता है तो वैसा ही रहा, स्नानादि कर पूजा पाठ करता है तो ब्राह्मण होगया, किसी शत्रु को लड़कर हराता है तो क्षत्रिय होगया, व्यापारादि करता है तो वैश्य होगया इस प्रकार दिन भर भिन्न २ कार्यो के करते रहने से वह कौनसो जाति या वर्ण का कहलायेगा और जब रात को ८ घंटे सोजाता है तो कोई भी काम नहीं करता तो उसका कौनसा वर्ण या जाति कहलावेगी ? क्या केवल वर्तमान वृत्ति भेद से जाति कल्पना करने वालों ने कभी इस बात को विवेक पूर्वक सोचने का कष्ट किया एक व्यक्ति प्रति समय चोरी न कर समस्त जन्म में केवल एक बार करके भी चोर ही कहलाता हैं । वेश्या, प्रतिसमय बेश्यात्व न करके भी प्रतिसमय वेश्या ही कहलाती हैं. एक व्यक्ति प्रति समय धर्म न करता हुआ भी धार्मिक ही कहलाता है इसी प्रकार बदलती रहनेवाली वृत्ति मात्र के कारण कोई ब्राह्मणादि नही कहला सकता किन्तु पंचेंद्रिय जातिगत मनुष्यगत ब्राह्मण जाति नामक नाम कर्म के उदय से हो बाहरण होता है,
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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