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________________ ४२ जैनधर्म I राज्य हुआ । इनके समय में वस्तुपाल और तेजपाल नामक जैन मन्त्रियोंने आचूके प्रसिद्ध मन्दिर बनवाये तथा शत्रुंजय और गिरनारपर भी जैनमन्दिर बनवाये । इस प्रकार गुजरातमें भी राजाश्रय मिलने से जैनधर्मकी बहुत उन्नति हुई । इस तरह भगवान महावीरके पश्चात् बिहार, उड़ीसा, तथा गुजरात वगैरह में लगभग २००० वर्ष तक जैनधर्मका खूब अभ्युदय हुआ । इस कालमें अनेक प्रभावशाली जैनाचार्योंने अपने उपदेशों और शास्त्रार्थोंके द्वारा जैनधर्मका प्रभाव फैलाया । अकेले एक समन्तभद्रने ही समस्त भारतमें घूम-घूम कर अनेक राजदरबारोंको अपनी वक्तृत्व शक्ति और प्रखर तार्किक बुद्धिसे प्रभावित किया था । अन्य प्रान्तोंमें भी पाये जानेवाले जैन स्मारकोंसे जैनधर्म के विस्तारका सबूत मिलता है । । ५. राजपूताने में जैनधर्म स्व० ओझाजीने अपने 'राजपूतानेके इतिहासमें लिखा है कि- 'अजमेर जिलेके वर्ली नामक गाँव में वीर सम्वत् ८४ ( वि० स० ३८६ पूर्व - ई० सं० ४४३ पूर्व ) का एक शिलालेख मिला है जो अजमेर के म्यूजियम में सुरक्षित है । उस परसे यह अनुमान होता है कि अशोक से पहले भी राजपूताने में जैनधर्मका प्रसार था । जैन लेखकोंका यह मत हैं कि राजा सम्प्रतिने, जो अशोकका वंशज था, जैनधर्मकी खूब उन्नति की और राजपूताना तथा उसके आसपासके प्रदेशमें भी उसने अनेक जैनमन्दिर बनवाये । वि० सं० की दूसरी शताब्दी में बने मथुराके कंकाली टीलाके जैन स्तूपसे तथा वहींके कुछ अन्य स्थानोंसे प्राप्त प्राचीन शिलालेखों और मूर्तियांसे मालूम होता हैं कि उस समय राजपूताने में भी जैनधर्मका अच्छा प्रचार था । जैनियोंकी प्रसिद्ध प्रसिद्ध जातियों, जैसे ओसवाल, खण्डेलवाल, बघेरवाल, पल्लीवाल आदिका उदय स्थान राजपूताना ही १. प्र० खं० पू० १०-११ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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