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________________ ४० जैनधर्म भी जैनलख मिल जाते हैं। इस प्रकारकी एक लेखयुक्त मूर्ति स्व० राखलदास बनर्जी पंचकोटके महाराजाके यहाँसे ले गये थे। शान्तिनिकेतनके आचार्य भितिमोहनसेन लिखते हैं'परीक्षा करनेसे बंगालके धर्म में, आचारमें और बनमें जैनधर्मका प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । जैनोंके अनेक शब्द बंगालमें प्रचलित हैं। प्राचीन बंगाली लिपिक बहुतसे शब्द विशंप तौरसे युक्ताक्षर देवनागरीके साथ नहीं मिलते, परन्तु प्राचीन जैनलिपिसे मेल खाते हैं।' ४. गुजरातमें जैनधर्म गुजरानके माथ जैनधर्मका सम्बन्ध बहुत प्राचीन है। २२ वें तीर्थकर श्रीनेमिनाथने यहींक गिरनार पर्वत पर जिनदीक्षा लेकर मुक्तिलाभ किया था। यहाँकी ही वल्भी नगरीमें वीर निर्वाण सम्बत ११३ में एकत्र हुए इवेताम्बर संघने अपने आगमग्रन्यांको व्यवस्थित करके उनको लिपिबद्ध किया था। जैसे दक्षिण भारतमें दिगम्बर जैनोंका प्राबल्य रहा है, लगभग वैसे ही गुजरातमें श्वेताम्बर जैनोंका प्राबल्य रहा है। गुजरातमें भी अनेक राजवंश जैनधर्मावलम्बी हुए हैं। राष्ट्रकूटोंका राज्य भी गुजरातमें रहा है। गुजरातके संजान स्थानसे प्राप्त एक शिलालेखमें अमोघवर्ष प्रथमकी प्रशंसा की गई है तथा अमोघवर्षके गुरु श्रीजिनसेनने अपनी जयधवला टीकाकी प्रशस्तिमें अमोघवर्षका उल्लेख 'गुर्जरनरेन्द्र नामसे १. विश्ववाणीका जैन संस्कृति अंक, पृ० २०४ । २. Architecture of Ahamdabad में लिखा है कि-'यह मालूम नहीं कि जैनधर्म गुजरातमें पैदा हुआ या कहींसे आया, किन्तु जहाँ तक हमारा ज्ञान जाता है यह प्रान्त इस धर्मका बहुत उपयोगी घर व मुख्य स्थान रहा है।' ३. देखो-जयधवला १ खं० की प्रस्तावना, पृ० ७४ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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