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________________ २८ जैनधर्म कन्याएँ थीं और उस समयके प्रमुख राजघरानोंमें उनका विवाह हुआ था । सिन्धुसौवीर देशका राजा उदयन, अवन्तीनरेश प्रद्योत, कौशाम्वीका राजा शतानीक, चम्पाका राजा श्रेणिक ( बिंबसार ) ये सब राजा चेटकके जामाता थे । जैनसाहित्य में कुणिक और बौद्ध साहित्य में अजातशत्रुके नामसे प्रसिद्ध मगधसम्राट तथा जैन, बौद्ध और ब्राह्मण सम्प्रदायके कथासाहित्य में प्रसिद्ध वत्सराज उदयन, ये दोनो चेटक राजाके सगे दौहित्र थे । राजा चेटक भारतके तत्कालीन गणसत्ताक राज्यों में से एक प्रधान राज्यके नायक थे । वे जैन श्रावक थे, उन्होंने प्रतिज्ञा ले रखी थी कि वे जैनके सिवा किसी दूसरेसे अपनी कन्याओंका विवाह न करेंगे। इससे प्रतीत होता है कि उक्त सब राजघराने जैनधर्मको पालते थे । राजा उदयनको तो जैनसाहित्य में स्पष्ट रूपसे जैन श्रावक बतलाया है । उदयनकी रानीने अपने महल में एक चैत्यालय बनवाया था और उसमें प्रतिदिन जिन भगवानकी पूजा किया करती थी। पहले राजा उदयन तापसधर्मियोंका भक्त था पीछे धीरे-धीरे जिन भगवानके ऊपर श्रद्धा करने लगा था । स्व॰ डा० याकोबी लिखते हैं कि चेटक जैनधर्मका महान आश्रयदाता था । उसके कारण वैशाली जैनधर्मका एक संरक्षणस्थान बना हुआ था । इसीसे बौद्धोंने उसे पाखण्डियोंका मठ बतलाया है । राजा श्रेणिक ( ई० पू० ६०१ - ५५२ ) भारत के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध मगघाधिपति राजा बिम्बसार जैनसाहित्य में श्रेणिकके नामसे उति प्रसिद्ध है । यह राजा पहले बौद्ध भगवानका अनुयायी था। एक बार किसी चित्रकारने उसे एक राजकन्याका चित्र भेंट किया। राजा चित्र देखकर मोहित हो गया। चित्रकारसे उसने कन्याके पिताका
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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