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________________ इतिहास अवस्थामें राग, द्वेष और भयसे रहित होकर अपने धर्मका उपदेश दिया।' भगवान महावीरने तीस वर्षतक अनेक देश-देशान्तरोंमें विहार करके धर्मोपदेश दिया। जहाँ वह पहुँचते थे वहीं उनकी उपदेश-सभा लग जाती थी, और उसमें हिंस्र पशु तक पहुँचते थे और जातिगतऋरताको छोड़कर शान्तिसे भगवानका उपदेश सुनते थे। इस तरह भगवान काशी, कोशल, पंचाल, कलिंग, कुरुजांगल, कम्बोज, वाल्हीक, सिन्धु, गांधार आदि देशोंमें विहार करते हुए अन्तमें पावा'नगरी (बिहार) में पधारे । और वहाँसे कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिमें अर्थात् अमावस्याके प्रातःकाल में सूर्योदयसे पहले मुक्तिलाभ किया । जैसा कि लिखा है___ "उनतीस वर्ष, पाँच मास और वीस दिनतक ऋषि, मुनि, यति और अनगार इन चार प्रकारके मुनियों और बारह गणों अर्थात् सभाओं के साथ विहार करनेके पश्चात् भगवान महावीर ने पावानगर में कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीके दिन स्वाति नक्षत्रके रहते हुए, रात्रिके समय शेष अघाति कर्मरूपी रजको छेदकर निर्वाणको प्राप्त किया।' १ पुज्यपाद रचित संस्कृत निर्वाणभक्तिमें लिखा है'पावापुरस्य बहिरुन्नतभूमिदेशे पद्मोत्पलाकुलवतां सरसां हि मध्ये । श्रीवर्धमानजिनदेव इति प्रतीतो निर्वाणमाप भगवान प्रविधूतपाप्मा ॥२४॥" अर्थ-"पावापुरके बाहर स्थित, और कमलोंसे व्याप्त सरोवरके बीचमें, उन्नत भूमिदेशपर कर्मोका नाश करके भगवान् महावीरने निर्वाण लाभ किया। २ “वासाणूणत्तीसं पंच य मासे य वीस दिवसे य । चउविह अणगारेहि य वारहदिणेहि ( गणेहि ) विहरित्ता । पच्छा पावाणयरे कत्तियमासस्स किण्हचोद्दसिए । सादीए रत्तोए सेसरयं छेत्तु णिव्वाओ ॥३॥" -ज० धव० ख०, १, पृ० ८१ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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