SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म • ३७८ थे। दोनोंका जन्म बिहारमें हुआ था । महावीरके पिताका नाम सिद्धार्थ था और यही नाम कुमार अवस्थामें बुद्धका था । बुद्धको पत्नीका नाम यशोधरा था और श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार महावीरकी पत्नीका नाम यशोदा था । किन्तु इन समानताओंके होते हुए भी दोनों धर्मोंमें जो मौलिक अन्तर है उससे ये दोनों धर्म जुदे ही प्रमाणित होते हैं । दोनोंमें भेद दोनोंके धार्मिक ग्रन्थ जुड़े हैं, इतिहास जुदा है, कथाएँ जुदी हैं। इतना ही नहीं, किन्तु धार्मिक सिद्धान्त भी बिल्कुल जुदे हैं। जैनधर्म नित्य और अभौतिक जीवतत्त्वका अस्तित्व मानता है, तथा मानता है कि जबतक यह जीव पौद्गलिक कमोंसे बँधा रहता है तबतक संसारमें रहता है, फिर मुक्त होकर ऊपर सिद्धशिलापर जा विराजता है और अनन्त कालतक आत्मिक गुणोंमें मग्न रहता हुआ शाश्वत सुखको भोगता है । किन्तु बौद्ध जीवतत्वको नहीं मानते। उनके मतसे जिसे आत्मा या जीव कहते हैं वह कोई नित्य पदार्थ नहीं है, किन्तु क्षणिक धर्मोकी एक सन्तान है । उस सन्तानका विनाश ही मोक्ष है। जैसे तेल और बत्तीके जल चुकनेपर दीपकका विनाश हो जाता है वैसे हो उस सन्तानका भी नाश हो जाता है । बौद्धधर्मका यह सिद्धान्त जैनधर्मके सिद्धान्तसे बिल्कुल विपरीत है । 'महावीर केवल साधु न थे बल्कि तपस्वी भी थे । किन्तु बोध के प्राप्त होनेके बाद वह तपस्वी नहीं रहे, केवल साधु ही रहे और उन्होंने अपना पूरा पुरुषार्थ जीवनधर्म की ओर लगाया । अतः महावीरका लक्ष्य आत्मधर्म हुआ और बुद्धका लक्ष्य लोकधर्म हुआ । इसीसे बुद्ध अधिक प्रसिद्ध हुए । किन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि महावीर लोकसमाजसे सर्वथा दूर ही रहते थे । अर्हत् हो जाने के बाद वे भी लोकसमाजमें
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy