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________________ विविध ३२३ पैर पुजवाये। फिर मगधपर आक्रमण किया । दक्षिणके पाण्ड्यराजाने हाथी घोड़े मणि, मुक्त आदि भेटमें देकर खारवेलका आधिपत्य स्वीकार किया। ऐसा प्रबल पराक्रमी जैन राजा खारवेलके पश्चात् दूसरा नहीं हुआ। महाराज कुमारपाल चित्तौड़के किलेसे प्राप्त शिलालेखमें लिखा है कि महाराज कुमारपालने अपने प्रबल पराक्रमसे सब शत्रुओंको निर्मद कर दिया। उनको आज्ञाको पृथ्वीके सब राजाओंने मस्तक पर चढ़ाया। उसने शाकंभरीके राजाको अपने चरणोंमें नमाया। वह स्वयं अन लेकर सवालक्ष देश (मारवाड़) पर्यन्त चढ़ा और सब गढ़पतियोंको नमाया। सालपुरको भी वशमें किया। महाराज कुमारपाल गुजरातके राजा थे। गगनरश मारासह गंगनरेश मारसिंह भी जैसा धर्मात्मा था वैसा ही शूर-वीर भी था। इसने कृष्णराज तृतीयके भयानक शत्रु अल्लाहका मान-मर्दन किया और कृष्णराजकी सेनाकी रक्षा की। किरातोंको भगाया । वज्जालको हराया। वनवासीके अधिकारीको पकड़कर उसपर अधिकार किया। मथुराके राजाओंसे विनय प्राप्त की। नौलम्ब राजाओंको नष्ट किया। चालुक्य राजकुमार राजादित्यको हराया। तापी, मान्यखेड, गोनूर, वनवासी आदिकी लड़ाइयोंको जीता। इसकी गंगचूड़ामणि, नोलम्बांतक, माण्डलीक त्रिनेत्र, गंगविद्याधर, गंगवण आदि अनेक उपाधियाँ थीं। समरकेसरी चामुण्डराय यह राजा राचमल्लके सेनापति थे। राजा इनकी वीरतासे बड़ा प्रसन्न था। नब इन्होंने वज्जलदेवको हराया तो समरधुरन्धरकी पदवी पाई। नोलम्ब युद्धमें सफल होनेपर वीरमार्तण्ड कहलाये। उच्छंगके किलेको जीत लेनेपर रणराय
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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