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________________ ३१० जनधर्म चलाई गई । महावीरके निर्वाणसे लगभग एक हजार वर्षके पश्चात् साधुओंकी स्मृतिके आधारपर ग्यारह अंगोंका संकलन करके उन्हें सुव्यवस्थित किया गया और फिर उन्हें लिपिबद्ध किया गया । इन आगमोंको दिगम्बर सम्प्रदाय नहीं मानता । श्वेताम्बर सम्प्रदाय मानता है कि स्त्रीको भी मोक्ष हो सकता है तथा जीवन्मुक्त केवली भोजन ग्रहण करते हैं । दिगम्बर सम्प्रदाय इन दोनों सिद्धान्तोंको भी स्वीकार नहीं करता । दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायमें इन्हीं तीनों सिद्धान्तोंको लेकर मुख्य भेद है। संक्षेपमें कुछ उल्लेखनीय भेद निम्न प्रकार हैं १. केवलीका कवलाहार । २. केवलीका नीहार । ३. स्त्री मुक्ति । ४. शूद्र मुक्ति । ५. वस्त्र सहित मुक्ति । ६. गृहस्थवेष में मुक्ति । ७. अलंकार और कछोटेवाली प्रतिमाका पूजन । ८. मुनियोंके १४ उपकरण । ९. तीर्थकर मल्लिनाथका स्त्री होना । १०. ग्यारह अंगोंकी मौजूदगी । ११. भरत चक्रवर्तीको अपने भवनमें केवल ज्ञानकी प्राप्ति । १२. शूद्रके घर से मुनि आहार ले सके । १३. महावीरका गर्भहरण | १४. महावीर स्वामीको तेजोलेश्यासे उपसर्ग । १५. महावीर विवाह, कन्या जन्म ! १६. तीर्थ करके कन्धेपर देवदूष्य वस्त्र । १७. मरुदेवीका हाथीपर चढ़े हुए मुक्तिगमन । १८. साधुका अनेक घरोंसे भिक्षा ग्रहण करना ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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