SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९४ जैनधर्म करता था। इससे वह बड़ा घमण्डी हो गया था। एक बार शिवभूति बहुत रात गये घर लौटा। माँ ने फटकारा और द्वार नहीं खोला । तब वह एक मठमें पहुँचा और साधु हो गया। जब राजाको इस बातकी खबर मिली तो उसने उसे एक बहुमूल्य वस्र भेंट किया। आचार्य ने उस वस्त्रको लौटा देनेकी आज्ञा दी। किन्तु शिवभूतिने नहीं लौटाया । तब आचार्यने उस वस्त्र के टुकड़े करके उनके आसन बना डाले। इसपर शिवभूति खूब क्रोधित हुआ और उसने प्रकट किया कि महावीरकी तरह मैं भी वस्त्र नहीं पहरूँगा। ऐसा कह उसने सब वस्त्रोंका त्याग कर दिया । उसकी बहिनने भी उसका अनुकरण किया। स्त्रियोंको नग्न न रहना चाहिये ऐसा मत शिवभूतिने तब जाहिर किया। और यह भी जाहिर किया कि स्त्री मोक्ष नहीं जा सकती। इस तरह महावीर निर्वाणके ६०९ वर्प वाद बोटिकोंको उत्पत्ति हुई और उनमेंसे दिगम्बर सम्प्रदाय उत्पन्न हुआ।" दिगम्बर सम्प्रदायकी मान्यताके अनुसार भी श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति विक्रम राजाकी मृत्युके १३६ वें वर्पमें हुई है। दोनोंमें सिर्फ ३ वर्पका अन्तर होनेसे दोनोंकी उत्पत्तिका काल तो लगभग एक ही ठहरता है । रह जाती है कथाकी बात । सो महावीरके द्वारा प्रतिपादित और आचरित दिगम्बरधर्म उनके बाद एक दम लुप्त हो जाय और फिर एक ऋद्ध साधुके नंगे हो जाने मात्रसे चल पड़े और इतने विस्तृत और स्थायी रूपमें फैल जाय, यह सब कल्पनाकी वस्तु हो सकती है, किन्तु वास्तविकता इससे दूर है। जो श्वेताम्बर विद्वान इस कथाको ठीक समझते हैं वे भी इस बातको मानते हैं कि पहले साधु नग्न रहते थे फिर धीरे-धीरे परिग्रह बढ़ा। ___ उदाहरणके लिए श्वेताम्बर मुनि कल्याण विजयजीके शब्द ही हम यहाँ उद्धृत करते हैं___ "आयरक्षितके स्वर्गवासके बाद धीरे-धीरे साधुओंका निवास बस्तियोंमें होने लगा और इसके साथ ही नग्नताका
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy