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________________ जैनधर्म २८४ इस तरह जैनोंने बहुसंख्यक शिलालेखों, प्रतिमालेखों, ताम्रपत्रों, ग्रन्थ प्रशस्तियों, पुष्पिकाओं, पट्टावलियों, गुर्वावलियों, राजवंशावलियों और ग्रन्थोंके रूपमें विपुल ऐतिहासिक सामग्री प्रदान की है। स्व ० वैरिस्टर श्री का० प्र० जायसवालने अपने एक लेखमें लिखा था- 'जैनोंके यहाँ कोई २५०० वर्षकी संवत् गणनाका हिसाब हिन्दुओं भरमें सबसे अच्छा है। उससे विदित होता है कि पुराने समय में ऐतिहासिक परिपाटीकी वर्षगणना हमारे देशमें थी । जब वह और जगह लुप्त और नष्ट हो गयी, तब केवल जैनोंमें बच रही । जैनोंकी गणनाके आधारपर हमने पौराणिक और ऐतिहासिक बहुत-सी घटनाओंको जो बुद्ध और महावीरके समय से इधर की हैं, समयबद्ध किया और देखा कि उनका ठीक मिलान सुज्ञात गणनासे मिल जाता है । कई एक ऐतिहासिक बातोंका पता जैनोंकी ऐतिहासिक लेख पट्टावलियों में ही मिलता है।' १. जैन साहित्य संशोधक, खं १, पृ० २११ |
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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