SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८२ जैनधर्म बौद्ध और सनातनी हिन्दू सभीके लिए समान रूपसे सुलभ हैं।' ___ उनके इस मतकी पुष्टि विसेण्ट स्मिथने अपनी पुस्तक 'दी जैन स्तूप एण्ड अदर एण्टीक्वीटीस् आफ मथुरा' में की है। इस तरह प्राचीन मन्दिरों, मूर्तियों, शिलालेखों, गुफाओं और ताम्रपत्रोंके रूपमें आज भी जैन पुरातत्त्व यत्र तत्र पाया जाता है और बहुत सा समयके प्रवाहमें नष्ट हो गया तथा नष्ट कर दिया गया। मि० फर्ग्युसनका कहना है कि बारह खम्भोंके गुम्बजोंका जैनोंमें बहुत चलन रहा है । इस तरहका गुम्बज एक तो भेलसामें निर्मित समाधिमें पाया जाता है जो सम्भवतः ४ थी शतीका है। दूसरा बाघकी महान गुफाओंमें है जो छठी या सातवीं शतीका है । इस तरहके गुम्बज खोजने पर और भी मिल सकते थे। किन्तु इन गुम्बजोंके पतले और शानदार स्तम्भोंको मुसलमानोंने अपने कामका पाया; क्योंकि वे बड़ी सरलतासे फिरसे बैठाये जा सकते थे। इसलिए उन्हें बिना नष्ट किये ही मुसलमानोंने अपने काममें ले लिया। मि० 'फग्र्युसनका कहना है कि अजमेर, देहली, कन्नौज, धार और अहमदाबादकी विशाल मस्जिद जैनोंके मन्दिरोंसे ही पुनः निर्मित की गयी हैं। ___ गुजरातके प्रसिद्ध सोमनाथके मन्दिरको कौन नहीं जानता। ई० १०२५ में महमूद गजनीने इसे तोड़ा था। इस मन्दिर की निर्माण शैली गिरनार पर्वतपर स्थित श्री नेमिनाथके जैन मन्दिरसे मिलती-जुलती हुई है। मि० फर्ग्युसनका कहना है कि जब मुसलमानोंने इस मन्दिरपर आक्रमण किया उस समय वह सोमेश्वरका मन्दिर कहा जाता था। सोमेश्वर नामसे ही शिव मान लिया गया। यदि वह मन्दिर शिवका था तो उसमें अवश्य ही शिवलिंग प्रतिष्ठित होना चाहिये। किन्तु मुसलिम इतिहास लेखकोंका कहना है कि मूर्तिके सिर हाथ पैर और पेट था। ऐसी स्थितिमें वह मूर्ति शिवलिंग न होकर विष्णुकी या १. History of Indian and Eastern Architecture. P. 209.
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy