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________________ जैन कला और पुरातत्त्व २७९ जैन वैभवकी साक्षी देते हैं। गुजरातमें आबू के मन्दिरोंमें तो स्थापत्यकला देखते ही बनती है । विन्ध्यप्रान्तके छतरपुर राज्यके खजुराहा स्थानमें नवमीसे ग्यारहवीं शती तकके बहुतसे सुन्दर देवालय बने हुए हैं, और काले पत्थरकी खण्डित अखण्डित अनेक जैन प्रतिमाएँ जगह-जगह दृष्टिगोचर होती हैं। इलाहाबाद म्युनिसिपल संग्रहालयमें जैन मूर्तियोंका अच्छा संग्रह है जो प्रायः बुन्देलखण्डसे लायी गयी हैं। किसी समय बुन्देलखण्ड जैन पुरातत्त्व और कलाका महान् पोषक था। उसने शिल्पियोंको यथेच्छ द्रव्य देकर जैन कलात्मक कृतियोंका सृजन कराया। इसका पूरा हाल खजुराहा और देवगढ़की यात्रा करके ही जाना जा सकता है। चित्तौड़का जैन स्तम्भ स्थापत्यकलाकी दृष्टिसे उल्लेखनीय है। यह अपनी शैलीका अकेला ही है। इसकी ऊँचाई ८० फीट है, और घरातलसे चोटी तक सुन्दर नक्काशी और सजावटसे शोभित है। इसके नीचे एक शिलालेख भी है जिसमें उसका समय ८९६ ई० दिया है। यह स्तम्भ प्रथम तीर्थङ्कर आदिनाथसे सम्बद्ध है। इसके ऊपर उनकी सैकड़ों मूर्तियाँ अंकित हैं। ग्यालियरकी पहाड़ीपर भी पुरातत्त्वकी उल्लेखनीय सामग्री है। पहाड़के चारों ओर बहुतसी मूर्तियाँ खोदी हुई हैं, उनमेंसे कुछ तो ५७ फीट ऊँची हैं। फ्रेंच कलाविद ज्यूरिनोने अपनी पुस्तक 'ला रेलिजन द जैन' में ठीक ही लिखा है--'विशेषतः स्थापत्य कलाके क्षेत्रमें जैनियोंने ऐसी पूर्णता प्राप्त कर ली है कि शायद ही कोई उनकी बराबरी कर सके। __जैन स्थापत्यकलाके सबसे प्राचीन अवशेष उड़ीसाके उदयगिरि और खण्डगिरि पर्वतोंकी तथा जूनागढ़के गिरनार पर्वतकी गुफाओंमें मिलते हैं। उदयगिरि और खण्डगिरीकी गुफाओंके बारेमें फर्ग्युसनका कहना है कि उनकी विचित्रता और प्राचीनता तथा उसमें पायी जानेवाली मूर्तियोंके आकार-प्रकारके कारण उनका असाधारण महत्व है। उदयगिरिकी हाथीगुफा
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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