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________________ २६९ जैन साहित्य अकलंक' (ई० ६२० से ६८०) यह जैनन्यायके प्रतिष्ठाता थे। प्रकाण्ड पण्डित, धुरन्धर शास्त्रार्थी और उत्कृष्ट विचारक थे। जैनन्यायको इन्होंने जो रूप दिया उसे ही उत्तरकालीन जैन ग्रन्थकारोंने अपनाया। बौद्धोंके साथ इनका खूब संघर्ष रहा। स्वामी समन्तभद्रके यह सुयोग्य उत्तराधिकारी थे। इन्होंने उनके आप्तमीमांसा ग्रन्थपर 'अष्टशती' नामक भाष्यकी रचना की। इनकी रचनाएँ दुरूह और गम्भीर हैं । अबतक इनके अष्टशती, प्रमाणसंग्रह, न्यायविनिश्चय, लघीयस्त्रय, सिद्धिविनिश्चय और तत्त्वार्थराजवार्तिक, नामके ग्रन्थ प्रकाशमें आ चुके हैं। विद्यानन्दि (ई० ९वीं शती) विद्यानन्दि अपने समयके बहुत ही समर्थ विद्वान थे। इन्होंने अकलंकदेवकी अष्टशतीपर 'अष्टसहस्री' नामका महान ग्रन्थ लिखा है जिसे समझने में अच्छे अच्छे विद्वानोंको कष्ट सहस्रीका अनुभव होता है। ये सभी दर्शनोंके पारगामी विद्वान थे। इन्होंने आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक और युक्त्यनुशासन-टीका नामके ग्रन्थ रचे हैं। सभी बहुत प्रौढ़ दार्शनिक ग्रन्थ हैं। माणिक्यनन्दि (ई० ९वीं शती) इन्होंने अकलंकदेवके वचनोंका अवगाहन करके परीक्षामुख नामके सूत्र ग्रन्थकी रचना की है जिसमें प्रमाण और प्रमाणाभासका सूत्रबद्ध विवेचन किया है। सूत्र संक्षिप्त स्पष्ट और सरस हैं। अनन्तवीर्य (ई० की ९वीं शती) यह अकलंक न्यायके प्रकाण्ड पण्डित थे। इन्होंने उनके १. इनको जीवनी व परिचय जाननेके लिए न्यायकुमुदचन्द्रके प्रथम भागको प्रस्तावना पढ़िये ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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