SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारित्र १९१ लेनेकी अपेक्षा उनका मुधार कर देना अति उत्तम है, किन्तु यदि यह शक्य न हो तो अन्याय और अत्याचारको सहायता देना तो कभी भी उचित नहीं है। मगर व्यक्ति सुधर सकता है और इसलिये उसे अवसर अवश्य देना चाहिये । प्राणरक्षाके लिय असत्य बोलनेके मूलमें यही भाव है। ____ असत्य वचनके अनेक भेद हैं, जैसे-१-मनुप्यके विषयमें झूठ बोलना। शादी विवाहके अवसरोंपर विरोधियोंके द्वारा इस तरहके झूठ बोलनेका प्रायः चलन है । विरोधी लोग विवाह न होने देनेके लिये किसीकी कन्याको दृषण लगा देते हैं, किसीके लड़केमें बुराइयाँ बनला देते हैं। २-चौपायोंके विषयमें झूठ बोलना । जैसे, थोड़ा दूध देनेवाली गायको बहुत दूध देनेवाली बतलाना या बहुत दूध देनेवाली गायको थोड़ा दूध देनेवाली बतलाना । ३-अचेतन वस्तुओंके विषयमें झूठ बोलना। जैसे, दूसरेकी जमीनको अपनी बतलाना या टैक्स वगैरहसे बचनेके लिये अपनी जमीनको दूसरेकी बतलाना । ४-लाँचके लोभसे या ईषा होनेसे किसी सच्ची घटनाके विरुद्ध गवाही देना। ५-अपने पास रखी हुई किसीकी धरोहरके सम्बन्धमें असत्य बोलना। ये और इस तरह के अन्य झूठ वचन गृहस्थको नहीं बोलना चाहिये । इनसे मनुप्यका विश्वास जाता रहता है और अनाचारको भी प्रोत्साहन मिलता है, तथा जिनके विपयमें झूठ बोला गया है उन्हें दुःख पहुँचना है और वे जीवनके वैरी बन जाते हैं। जो लोग कारवार मजगारमें अधिक झूठ बोलते हैं और सञ्चा व्यवहार नहीं रखते, बाजारमें भी उनकी माख जाती रहती है। लोग उन्हें झुठा समझने लगते हैं और उनसे लेन देन नक बन्द कर देते हैं। बहुनसे लोग झुट बोलनेकी आदत न होनेपर भी कभी-कभी क्रोधमें आकर झूठ बोल जाते हैं, कुछ लोग लोभमें फंसकर झूठ बोल जाते हैं, कुछ लोग पुलिस वगैरहके डरसे झूठ बोल जाते हैं और कुछ लोग हंसी मजाकमें झूठ बोल जाते हैं । अतः
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy