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________________ कालद्रव्य १०५ २ प्रतिक २०२ ६. यह विश्व और उसकी ३ सामायिको व्यवस्था १०८ ४ प्रोषधोपवासी २०७ ७. जैन दृष्टिसे ईश्वर ११९ ५ सचित्तविरत २०७ ८. उसकी उपासना १२५ ६ दिवामैथुनविरत ६. सात तत्व ७ ब्रह्मचारी २०६ १०. कर्म सिद्धान्त १४२ ८ आरम्भविरत २१० कर्म का स्वरूप १४२ परिग्रहविरत २१० कर्म अपना फल कैसे देते हैं १४५ १० अनुमतिविरत २११ कर्मके भेद १४८ ११ उद्दिष्टविरत कर्मोंकी अनेक दशाएँ १५२ साधक श्रावक २१४ ३. चारित्र १५६-२४६ ६. श्रावक धर्म और विश्व की समस्याएँ २१७ १. ससारम दुःख क्या ह १५५ ७. मुनिका चारित्र २२५ २. मुक्तिका मार्ग १६२ साधुको दिनचर्या २३२ ३. चारित्र या आचार १६६ ८.गुणस्थान २३६ ४. अहिंसा १७१ ९. मोक्ष या सिद्धि __गृहस्थकी अहिंसा १७७ १०. क्या जैनधर्म ५. श्रावकका चारित्र १८३ नास्तिक है २४५ अहिंसाणुव्रत १८४ ४.जैनसाहित्य२४७-२७३ रात्रिभोजन और जलगालन १८८ सत्याणुव्रत १६० दिगम्बर साहित्य २४८ अचौर्याणुव्रत श्वेताम्बर साहित्य २५७ ब्रह्मचर्याणुव्रत १९४ ४. कुछ प्रसिद्ध जैनाचार्य २६३ परिग्रह परिमाणवत १६५ गौतम गणधर श्रावकके मेद ११८ भद्रबाहु २६४ पाक्षिक श्रावक १९९ घरसेन २६४ [नैष्ठिक श्रावक २०० पुष्पदन्त और भूतबलि २६४ १ दर्शनिक २०० गुणधर २६५ २४३ २६३
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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