SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म बन्धनबद्ध होते और एककी मुक्तिसे सभी मुक्त हो जाते। जीवोंकी भिन्न-भिन्न अवस्थाओंको देखकर ही सांख्यने भी जीवोंकी अनेकताको स्वीकार किया है। जैनदर्शनका भी यही मत है । ४ ५. अजीवद्रव्य जिन द्रव्योंमें चैतन्य नहीं पाया जाता वे अजीवद्रव्य कहे जाते हैं। वे पाँच हैं। उनका परिचय इस प्रकार है १. पुद्गलद्रव्य यह बात उल्लेखनीय है कि जैनदर्शनमें पुद्गल शब्दका प्रयोग बिल्कुल अनोखा है, अन्य दर्शनों में इसका प्रयोग नहीं पाया जाता । जो टूटे फूटे, बने और बिगड़े वह सब पुद्गलद्रव्य है । मोटे तौरपर हम जो कुछ देखते हैं, छूते हैं, सूँघते हैं, खाते हैं और सुनते हैं वह सब पुद्गलद्रव्य है । इसीलिये जैन शास्त्रोंमें पुद्गलका लक्षण रूप, रस, गंध और स्पर्शवाला बतलाया है । इस तरह पुद्गलसे आधुनिक विज्ञानके 'मैटर' ( matter ) और इनर्जी (Energy ) दोनों ही संगृहीत हो जाते हैं । जो परमाणुसम्बन्धी आधुनिक खोजोंसे परिचित हैं वे पुद्गल शब्दके चुनाव की प्रशंसा ही करेंगे। आधुनिक वैज्ञानिकोंके मतानुसार सब अटोम ( परमाणु ) इलैक्ट्रोन प्रोट्रोन और न्यूट्रोनके समूह मात्र हैं। विज्ञानमें यूरेनियम एक धातु है उससे सदा तीन प्रकारको किरणें निकलती रहती हैं। जब यूरेनियमका एक अणु तीनों किरणोंको खो बैठता है तो वह एक रेडियमके अणुके रूपमें बदल जाता है। इसी तरह रेडियम अणु शीशा धातुमें परिवर्तित हो जाता है । यह परिवर्तन बतलाता है कि एलेक्ट्रोन और प्रोट्रोनके विभागमें 'मैटर' का एक रूप दूसरे रूपमें परिवर्तित हो जाता है । इस रद्दो बदल और टूट फूटको 'पुद्गल' शब्द बतलाता है। छहों द्रव्योंमें एक पुद्गल द्रव्य ही मूर्तिक है, शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। न्यायदर्शन
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy