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________________ ५९६ पूर्वी और पश्चिमी दर्शन पंचाध्यायी प्रमाणनयतत्त्वा० प्रव० प्रमाणमी० प्रमाणवा०, प्र० वा० प्रमाणवार्तिकालं० प्रमाणवा० मनोरथ० । प्र० वा० मनोर० प्रमाणवा० स्ववृ० प्रमाणवा० स्ववृ०टी०) प्र०वास्ववृत्ति टी० प्रमाणसमु० प्रमाणसं० प्रमेयक० प्रमेयरत्नमाला प्रश० कन्द० प्रश० भा० प्रश०भा० व्यो० प्राकृतच० प्राकृतसर्व प्राकृतसं० जैनदर्शन डॉ. देवराजकृत राजमल्लकृत प्रयाणनयतत्त्वालोकालङ्कार प्रवचनसार प्रमाणमीमांसा प्रमाणवार्तिक प्रमाणवार्तिकालंकार प्रमाणवार्तिकमनोरथनन्दिनी टीका प्रमाणवार्तिकस्ववृत्ति प्रमाणवार्तिकस्ववृत्तिटीका प्रमाणसमुच्चय प्रमाणसंग्रह अकलङ्कग्रन्थत्रयान्तर्गत प्रमेयकमलमार्तण्ड अनन्तवीयकृत प्रशस्तपादभाष्य-कन्दलीटीका प्रशस्तपादभाष्य प्रशस्तपादभाष्य-व्योमवतोटोका प्राकृतचन्द्रिका प्राकृतसवस्व प्राकृतसंग्रह राहुलसांकृत्यायनकृत बोधिचर्यावतार बोधिचर्यावतारपञ्जिका बृहटिप्पणिका, जैन साहित्य संशोधकमें प्रकाशित बुद्धचर्या बोधिचर्या बोधिचर्याः पं० बृहट्टिपणिका जैन सा० सं०
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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