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________________ क्षणिकवादमीमांसा ४३१ छोड़ते और स्कन्ध-अवस्था धारण नहीं करते तथा अतीन्द्रिय सूक्ष्म परमाणुओंका पुंज भी अतीन्द्रिय ही बना रहता है; तो वह घट, पट आदि रूपसे इन्द्रियग्राह्य नहीं हो सकेगा। परमाणुओंमें परस्पर विशिष्ट रासायनिक सम्बन्ध होनेपर ही उनमे स्थूलता आती है, और तभी वे इन्द्रियग्राह्य होते है। परमाणुओंका परस्पर जो सम्बन्ध होता है वह स्निग्धता और रूक्षताके कारण गुणात्मक परिवर्तनके रूपमे होता है । वह कथञ्चित्तादात्म्यरूप है, उसमे एकदेशादि विकल्प नहीं उठ सकते। वे ही परमाणु अपनी सूक्ष्मता छोड़कर स्थूलरूपताको धारण कर लेते है । पुद्गलोंका यही स्वभाव है। यदि परमाणु परस्पर सर्वथा असंसृष्ट रहते है; तो जैसे बिखरे हुए परमाणुओंसे जलधारण नहीं किया जा सकता था वैसे पुजीभूत परमाणुओंसे भी जलधारण आदि क्रियाएं नहीं हो सकेंगी। पदार्थ पर्यायकी दृष्टिसे प्रतिक्षण विनाशी होकर भी अपनी अविच्छिन्न सन्ततिकी दृष्टिसे कथञ्चित् ध्रुव भी है। सन्तति, पंक्ति और सेनाकी तरह बुद्धिकल्पित ही नहीं है, किन्तु अर्थात् वस्तुतः एक चित्तक्षण वराबर ३ क्षण होनेसे ५१ क्षणकी आयु रूपकी मानी गई है । यदि अमिधम्मत्थसंगहकारने जो बताया है वैसा ही भगवान् बुद्धको अभिप्रेत हो तो कहना होगा कि बुद्धसम्मत क्षणिकता और योगाचारसम्मत क्षणिकतामें महत्त्वपूर्ण अन्तर है। सर्वास्तिवादियोंके मतसे 'सत्' की त्रैकालिक अस्तित्वसे व्याप्ति है। जो सत् है अर्थात् वस्तु है वह तोनों कालमें अस्ति है। 'सर्व' वस्तुको तीनों कालोमें अस्ति माननेके कारण ही उस वादका नाम सर्वास्तिवाद पड़ा है ( देखो सिस्टम ऑफ बुद्विस्टिक थाट पृ० १०३) सर्वारितवादियोंने रूप परमाणुको नित्य मानकर उसीमें पृथिवी, अप, तेज, वायुरूप होनेकी शक्ति मानी है। ( वही पृ० १३४, १३७) "सर्वास्तिवादियोंने नैयायिकांके समान परमाणुसमुदायजन्य अवयवीको अतिरिक्त नही, किन्तु परमाणुसमुदायको ही अवयवी माना है। दोनोंने परमाणुको नित्य मानते हुए भी समुदाय और अवयवोको अनिन्य माना है। सर्वास्तिवादियोंने एक ही परमाणुका अन्य परमाणुके संसर्गसे नाना अवस्था मानो हैं और उन्हीं नाना अवस्थाओंको अनित्य माना है, परमाणुको नहीं ( वही, पृ० १२१,१३७ )'-जैनतर्कवा० टि० पृ० २८२ ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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