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________________ अनुमानप्रमाणमीमांसा ३३९ १ भावरूप प्रमेयके लिये जैसे भावात्मक प्रमाण होता है उसी तरह अभावरूप प्रमेयके लिये अभावरूप प्रमाणकी ही आवश्यकता है । वस्तु सत् और असत् उभयरूप है । इनमें इन्द्रिय आदिके द्वारा सदंशका ग्रहण हो जाने पर भी असदंशके ज्ञान के लिये अभावप्रमाण अपेक्षित होता है । जिस पदार्थका निषेध करना है उसका स्मरण, जहाँ निषेध करना है उसका ग्रहण होने पर मनसे ही जो 'नास्ति' ज्ञान होता है वह अभाव है । जिस वस्तुरूपमें सद्भावके ग्राहक पांच प्रमाणोंकी प्रवृत्ति नहीं होती उसमें अभाव बोधके लिये अभावप्रमाण प्रवृत्ति करता है । अभाव यदि न माना जाय तो प्रागभावादिमूलक समस्त व्यवहार नष्ट हो जायगे । वस्तुकी परस्पर प्रतिनियत रूपमें स्थिति अभावके अधीन है दूधमें दहीका अभाव प्रागभाव है। दहीमें दूधका अभाव प्रध्वंसाभाव है । घटमें पटका अभाव अन्योन्याभाव या इतरेतराभाव है और खरविषाणका अभाव अत्यन्ताभाव है । ५ किन्तु वस्तु उभयात्मक है, इसमें विवाद नहीं है, पर अभावांश भी वस्तुका धर्म होनेसे यथासंभव प्रत्यक्ष, प्रत्यभिज्ञान और अनुमान आदि प्रमाणोंसे ही गृहीत हो जाता है । भूतल और घटको 'सघटं भूतलम्' १. 'मेयो यद्वदभावो हि मानमप्येवमिष्यताम् । भावात्मके यथा मेये नाभावस्य प्रमाणता ॥ तथैवाभावमेयेऽपि न भावस्य प्रमाणता । " - मी० श्लो० अभाव० श्लो० ४५-४६ । २. मी० श्लो० अभाव० श्लो० १२-१४ । ३. गृहीत्वा वस्तुसद्भावं स्मृत्वा च प्रतियोगिनम् । मानसं नास्तिताज्ञानं जायते अचानपेक्षया ।' ४. मो० श्लो० अभाव० श्लो० १ । ६. मी० श्लो० अभा० श्लो० २-४ । -मी० श्लो० अभाव० श्लो० २७ । ५. मो० श्लो० अभाव० श्लो० ७ ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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