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________________ दो शब्द धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य और कालद्रव्यका विविध मान्यताओंका उल्लेख करके स्वरूप बताया है। साथ ही वैशेषिक आदिको द्रव्य-व्यवस्था और पदार्थ-व्यवस्थाका अन्तर्भाव दिखाया है। इसी प्रकरणमें कार्योत्पत्तिविचारमें सत्कार्यवाद, असत्कार्यवाद आदिकी आलोचना करके सदसत्कार्यवादका समर्थन किया है। ७. सातवें-'सप्ततत्त्वनिरूण' प्रकरणमे मुमुक्षुओंको अवश्य ज्ञातव्य जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वोंका विस्तृत विवेचन है। बौद्धोंके चार आर्यसत्योंकी तुलना, निर्वाण और मोक्षका भेद, नैरात्म्यवादकी मीमांसा; आत्माकी अनादिवद्धता आदि विषयोंकी चरचा भी प्रसङ्गतः आई है। शेष अजीव आदि तत्त्वोंका विशद विवेचन तुलनात्मक ढंगसे किया है। ८. आठवें-'प्रमाणमीमांसा' प्रकरणमें प्रमाणके स्वरूप, भेद, विषय और फल इन चारों मुद्दों पर खूब विस्तारसे परपक्षकी मीमांसा करके विवेचन किया गया है। प्रमाणाभास, संख्याभास, विषयाभास और फलाभास शीर्षकोंमें सांख्य, वेदान्त, शब्दाद्वैत, क्षणिकवाद आदिको मीमांसा की गई है। आगम प्रकरणमें वेदके अपौरुषेयत्वका विचार, शब्दकी अर्थवाचकता, अपोहवादको परीक्षा, प्राकृत अपभ्रंश शब्दोंकी अर्थवाचकता, आगमवाद तथा हेतुवादका क्षेत्र आदि सभी प्रमुख विषय चर्चित है । मुख्य प्रत्यक्षके निरूपणमे सर्वज्ञसिद्धि और सर्वज्ञताके इतिहासका निरुपण है । अनुमान प्रकरणमें जय-पराजय व्यवस्था और पत्रवाक्य आदिका विशद विवेचन है । विपर्ययज्ञानके प्रकरणमें अख्याति, असत्ख्याति आदिको मीमांसा करके विपरीतख्याति स्थापित की गई है। ६. नवें-'नयविचार' प्रकरणमें नयोंका स्वरूप, द्रव्याथिक-पर्यायार्थिक भेद, सातों नयोंका तथा तदाभासोंका विवेचन, निक्षेप प्रक्रिया और निश्चय-व्यवहारनय आदिका खुलासा किया गया है। १०. दसवें-'स्याद्वाद और सप्तभंगो' प्रकरणमें स्याद्वादकी निरुक्ति,
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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